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कल जब मैं मर जाऊँगा (#Aalokry)

कल जब मैं मर जाऊँगा। तब तुम मेरे लिए आंसू बहाआगे  पर मुझे पता नही चलेगा तो  उसके बजाय  आज तुम मेरी इम्पॉर्टन्टस को महसूस क...

06 September 2013


जिस स्थान को मेरुशीर्ष या मस्तक ग्रन्थि (Medulla) कहते हैं वह मनुष्य देह का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है| यहाँ मेरुदंड की समस्त नाड़ियाँ मस्तिष्क से मिलती हैं| यह शिखा के स्थान से थोड़ा नीचे है| यहाँ कोई शल्य क्रिया भी नहीं हो सकती| यही से ब्रह्मांडीय ऊर्जा प्रवेश कर विभिन्न चक्रों को ऊर्जा देकर देह को जीवंत रखती है|
मेरुदंड से आ रही अति सूक्ष्म सुषुम्ना नाड़ी यहाँ आकर दो भागों में बंट जाती है|
एक तो सीधी सहस्त्रार को चली जाती है और दूसरी भ्रू मध्य तक उल्टे अर्धचंद्राकार रूप में चली जाती है| सुषुम्ना का जो भाग मूलाधार से भ्रू मध्य तक गया है वह परा सुषुम्ना है| कुण्डलिनी शक्ति इसी मार्ग में जागृत होकर विचरण करती है|
पर जो मार्ग मस्तक ग्रंथि से सीधा सहस्त्रार में गया है वह उत्तरा पथ, उत्तरायण का पथ या साक्षात् ब्रह्म मार्ग है| जीवात्मा का यहीं निवास है| यह मार्ग गुरु कृपा से ही खुलता है| सामान्य व्यक्ति में यह मार्ग मृत्यु के समय खुलता है| मृत्यु के समय जीवात्मा यहीं से ब्रह्मा रंध्र को पार कर बाहर निकल जाती है| योगियों के लिए यही ह्रदय है, यही उनकी साधना की भूमि है| यहीं पर ज्योतिर्मय ब्रह्म के दर्शन होते हैं जिसका प्रतिबिम्ब भ्रू मध्य में दिखाई देता है| यही पर प्रणव (अनहद नाद) की ध्वनी सुनाई देती है| यहाँ जो शक्ति जागृत होती है वह परम कुण्डलिनी है|
उसके बारे में भगवान शिव कहते हैं ---
"भकारम् श्रुणु चार्वंगी स्वयं परमकुंडली|
महामोक्षप्रदं वर्ण तरुणादित्य संप्रभं ||
त्रिशक्तिसहितं वर्ण विविन्दुं सहितं प्रिये|
आत्मादि तत्त्वसंयुक्तं भकारं प्रणमाम्यह्म्||"
महादेवी को संबोधित करते हुए महादेव कहते हैं कि हे (चारू+अंगी) सुन्दर देह धारिणी, 'भ'कार 'परमकुंडली' है| यह महामोक्षदायी है जो सूर्य की तरह तेजोद्दीप्त है| इसमें तीनों देवों की शक्तियां निहित हैं ...................|
महादेव 'भ'कार द्वारा उस महामोक्षदायी परमकुण्डली की ओर संकेत करते हुए ज्ञानी साधकों की दृष्टि आकर्षित करते हुए उन्हें कुंडली जागृत कर के उत्तरा सुषुम्ना की ओर बढने की प्रेरणा देते हैं कि वे शिवमय हो जाएँ|
गुरु की आज्ञा से ध्यान तो भ्रू मध्य में किया जाता है पर उसकी अनुभूतियाँ खोपड़ी के पीछे की और होती हैं|
यह ज्योति ही वास्तव में चैतन्य जगत में प्रवेश का अनुमति पत्र है| अतः भ्रूमध्य में उस ज्योति पर और अनाहत नाद पर निरंतर ध्यान करें| यही स्वर्ग का द्वार है|

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