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06 September 2013

साधकों के लिए रात्रि को सोने से पहिले


साधकों के लिए रात्रि को सोने से पहिले का समय सर्वश्रेष्ठ होता है| इसके लिए तैयारी करनी पडती है|
सायंकालीन आहार जल्दी लें|
पूर्व या उत्तर की और मुंह करके कम्बल के आसन पर बैठकर सद्गुरु, परमात्मा और सब संतों को प्रणाम करें|
सद्गुरु प्रदत्त या इष्ट देव के मन्त्र का तब तक जाप करें जब तक आपका ह्रदय प्रेम से नहीं भर उठे| इतना जाप करें कि आप प्रेममय हो जाएँ| जीवन में एकमात्र महत्व उस प्रेम का ही है जो परमात्मा के प्रति आपके अंतर में है|
मूलाधार से आज्ञाचक्र तक (कुछ दिनों बाद सहस्त्रार तक) और बापस क्रमशः हरेक चक्र पर ओम का मानसिक जाप खूब देर तक करें जब तक आप को संतुष्टि न मिले| समापन आज्ञाचक्र पर ही करें|
अपनी सब चिंताएं और समस्याएँ जगन्माता को सौंपकर निश्चिन्त होकर वैसे ही सो जाएँ जैसे एक बालक माँ की गोद में सोता है| ध्यान रहे आप बिस्तर पर नहीं, माँ की गोद में सो रहे हैं| पूरी रात सोते जागते कैसे भी हो, जगन्माता की प्रेममय चेतना में ही रहें| संसार में जगन्माता को छोड़कर अन्य कोई भी आपका नहीं है| उनका साथ शाश्वत है जो जन्म से पूर्व, मृत्यु के बाद और निरंतर अनवरत आपके साथ है|
पूरे दिन भगवान का स्मरण रखें| यदि भूल जाएँ तो याद आते ही फिर स्मरण शुरू कर दें| मेरुदंड यानि कमर सदा सीधी रखें| याद आते ही कमर सीधी कर लें| दोपहर को यदि समय मिले तो फिर कुछ देर चक्रों में ओम का जाप कर लें| भागवत मन्त्र का यथासंभव खूब जाप करें|
धीरे धीरे आप की चेतना भगवान से युक्त हो जायेगी| भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त और कुछ भी न मांगे| उन्हें पता है कि आपको क्या चाहिए| भगवान के पास सब कुछ है पर आपका प्रेम नहीं है जिसके लिए वे भी तरसते हैं| आप भगवान से इतना कुछ मंगाते हो, भगवान ने ही आपको सब कुछ दिया है तो क्या आप अपना पूर्ण प्रेम भगवान को नहीं दे सकते? ॐ तत्सत 

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