मेरुदंड के चक्रों पर बीज मन्त्रों से मानसिक जाप की विधि:
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सीधे बैठकर ध्यान भ्रूमध्य पर रखें|
गुदा का तनिक संकुचन कर मूलाधार पर जाप करें -- "लं"|
तनिक ऊपर उठाकर स्वाधिष्ठान पर -- "वं"|
मणिपुर पर -- रं"|
अनाहत पर -- "यं"|
विशुद्धि पर -- "हं"|
आज्ञा पर -- "ॐ"|
सहस्त्रार पर कुछ अधिक जोर से -- "ॐ"|
पल भर रुककर विपरीत क्रम से जाप करते हुए नीछे आइये| पल भर रुकिए और इस प्रक्रिया को सहज रूप से जितनी बार कर सकते हैं कीजिये|
बीज मन्त्रों के जाप में कठिनाई हो तो इनके स्थान पर "ॐ" का जाप कर सकते हैं|
इस जाप के समय दृष्टी भ्रूमध्य पर ही रहे|
जाप के उपरांत शांत होकर बैठ जाइए और खूब देर तक ॐ की ध्वनि को सुनते रहें| खूब देर शांत होकर बैठें| इन बीज मन्त्रों के जाप से सूक्ष्म शक्तियों का जागरण होता है|
"ॐ" और "राम्" दोनों एक ही हैं| संस्कृत व्याकरण के अनुसार राम् और ॐ दोनों में कोई अंतर नहीं हैं| इस विषय पर एक प्रस्तुति (post) दी जा चुकी है| 'राम' नाम तारक मंत्र है| हर चक्र पर राम नाम का जाप भी कर सकते हैं|
एक प्रयोग जो मैंने किया और जिससे मुझे बहुत लाभ मिला वह यहाँ बता रहा हूँ| जब आपकी सांस भीतर जा रही हो उस समय मेरु दंड में सुषुम्ना नाडी में मूलाधार से ऊपर उठते हुए हर चक्र पर हनुमान जी का ध्यान करें| ऐसा भाव करें की श्री हनुमान जी की शक्ति आपकी सुषुम्ना नाडी में आरोहण कर रही है| जब सांस बाहर जा रही हो उस समय यह भाव करें कि सुषुम्ना के बाहर पीछे की ओर से हनुमान जी की शक्ति अवरोहण कर रही है| सांस लेते समय पुनश्चः आरोहण, और सांस छोड़ते समय अवरोहण हो रहा है| साथ साथ उपरोक्त जाप भी चलता रहे| जाप को आज्ञा चक्र या सहस्त्रार पर ही पूर्ण करें|
सहस्त्रार और आज्ञा चक्र पर जो ज्योति (ज्योतिर्मय ब्रह्म) दिखाई देती है वही श्री गुरु के चरण हैं| उसमें समर्पण ही श्री गुरु-चरणों में समर्पण है|
ह्रदय में निरंतर भगवान राम का और भ्रूमध्य में गुरु रूप में ज्योतिर्मय ब्रह्म या हनुमान जी का ध्यान करें| भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य किसी भी तरह की कामना ना करें| ॐ|
गुदा का तनिक संकुचन कर मूलाधार पर जाप करें -- "लं"|
तनिक ऊपर उठाकर स्वाधिष्ठान पर -- "वं"|
मणिपुर पर -- रं"|
अनाहत पर -- "यं"|
विशुद्धि पर -- "हं"|
आज्ञा पर -- "ॐ"|
सहस्त्रार पर कुछ अधिक जोर से -- "ॐ"|
पल भर रुककर विपरीत क्रम से जाप करते हुए नीछे आइये| पल भर रुकिए और इस प्रक्रिया को सहज रूप से जितनी बार कर सकते हैं कीजिये|
बीज मन्त्रों के जाप में कठिनाई हो तो इनके स्थान पर "ॐ" का जाप कर सकते हैं|
इस जाप के समय दृष्टी भ्रूमध्य पर ही रहे|
जाप के उपरांत शांत होकर बैठ जाइए और खूब देर तक ॐ की ध्वनि को सुनते रहें| खूब देर शांत होकर बैठें| इन बीज मन्त्रों के जाप से सूक्ष्म शक्तियों का जागरण होता है|
"ॐ" और "राम्" दोनों एक ही हैं| संस्कृत व्याकरण के अनुसार राम् और ॐ दोनों में कोई अंतर नहीं हैं| इस विषय पर एक प्रस्तुति (post) दी जा चुकी है| 'राम' नाम तारक मंत्र है| हर चक्र पर राम नाम का जाप भी कर सकते हैं|
एक प्रयोग जो मैंने किया और जिससे मुझे बहुत लाभ मिला वह यहाँ बता रहा हूँ| जब आपकी सांस भीतर जा रही हो उस समय मेरु दंड में सुषुम्ना नाडी में मूलाधार से ऊपर उठते हुए हर चक्र पर हनुमान जी का ध्यान करें| ऐसा भाव करें की श्री हनुमान जी की शक्ति आपकी सुषुम्ना नाडी में आरोहण कर रही है| जब सांस बाहर जा रही हो उस समय यह भाव करें कि सुषुम्ना के बाहर पीछे की ओर से हनुमान जी की शक्ति अवरोहण कर रही है| सांस लेते समय पुनश्चः आरोहण, और सांस छोड़ते समय अवरोहण हो रहा है| साथ साथ उपरोक्त जाप भी चलता रहे| जाप को आज्ञा चक्र या सहस्त्रार पर ही पूर्ण करें|
सहस्त्रार और आज्ञा चक्र पर जो ज्योति (ज्योतिर्मय ब्रह्म) दिखाई देती है वही श्री गुरु के चरण हैं| उसमें समर्पण ही श्री गुरु-चरणों में समर्पण है|
ह्रदय में निरंतर भगवान राम का और भ्रूमध्य में गुरु रूप में ज्योतिर्मय ब्रह्म या हनुमान जी का ध्यान करें| भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त अन्य किसी भी तरह की कामना ना करें| ॐ|
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