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कल जब मैं मर जाऊँगा (#Aalokry)

कल जब मैं मर जाऊँगा। तब तुम मेरे लिए आंसू बहाआगे  पर मुझे पता नही चलेगा तो  उसके बजाय  आज तुम मेरी इम्पॉर्टन्टस को महसूस क...

11 September 2016

आपका मन भी अथाह शक्तियों से भरा है

दूध उपयोगी है, किंतु एक ही दिन के लिए, फिर वो खराब हो जाता है। दूध में एक बूंद छाछ डालने से वह दही बन जाता है, जो केवल एक और दिन टिकता है। दही का मंथन करने पर मक्खन बन जाती है। यह एक और दिन टिकता है। मक्खन को उबालकर घी बनता है, घी कभी खराब नहीं होता।
एक ही दिन में बिगडने वाले दूध में कभी-ना बिगड़ने वाला घी छिपा है।
इसी तरह आपका मन भी अथाह शक्तियों से भरा है, उसमे कुछ सकारात्मक विचार डालो अपने आपको मथो अर्थात चिंतन करो, अपने जीवन को और तपाओ, 
*आप कभी न ख़राब होने वाले व्यक्ति बन जाओगे।*

07 July 2016

गुरु का मार्गदर्शन~ - सपने में या ध्यान में गुरु का मार्गदर्शन पाने के लिए

@ = गुरु का मार्गदर्शन~ - सपने में या ध्यान में गुरु का मार्गदर्शन पाने के लिए = @

कोई समस्या है आप अपने गुरु से पूछना चाहते हों तो सोते समय बिस्तर पे बैठें ..लाइट बंद है और एक छोटा सा दिया ... दिए की लौ बहुत छोटी ... ज्यादा बड़ी ज्योत न हो और उसकी तरफ देखते-देखते आप अपने इष्ट .... अपने गुरु का ध्यान करें और उनको मन में कहें कि हम आप की शरण में है ... आप हमारे स्वामी है ...गुरु हैं ...हमें आप प्रेरणा दीजिये हम क्या करें ... हमें सदा प्रेरणा दीजिये ... ऐसा करते करते सो जाएँ ....आपको उनका मार्गदर्शन निश्चित रूप से मिलेगा ..चाहे ध्यान में मिले... चाहे स्वप्ने में भी मिले.
सोते समय और भी प्रयोग कर सकते हैं .. बिस्तर पे बैठे हों ...सीधे बैठे हों केवल ठोडी कंठकूप से लगा दी और भगवत गीता के दूसरे अध्याय का ७वां श्लोक का आखरी चरण मन में बोले ... बैठने की स्थिति ऐसी हो कंठ कूप पर दबाव पड़े .."शिष्यस्तेऽहं शाघि मां त्वां प्रपन्नम " वे श्लोक न याद रहे तो आखिरी में तीन बाते हैं .. अर्जुन ने भगवान कृष्ण को कहीं ... हम अपने इष्ट को ...अपने गुरु को कहें .. " हम आपके शिष्य है ....आपकी शरण में है ....मुझे प्रेरणा दो ... मुझे क्या करना चाहिए इस विषय में "
~~~*-नमः शिवाय-*~~~~
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17 June 2016

shri yantra



श्री यन्त्र


                                                                    ।। नमः शिवाय ।।
श्री यन्त्र को यंत्र शिरोमणि श्रीयंत्र, श्रीचक्र व त्रैलोक्यमोहन चक्र भी कहते हैं । धन त्रयोदशी और दीपावली को यंत्रराज श्रीयंत्र की पूजा का अति विशिष्ट महत्व है । श्री यंत्र या श्री चक्र सारे जगत को वैदिक सनातन धर्म, अध्यात्म की एक अनुपम और सर्वश्रेष्ठ देन है। इसकी उपासना से जीवन के हर स्तर पर लाभ का अर्जन किया जा सकता है, इसके नव आवरण पूजन के मंत्रों से यही तथ्य उजागर होता है।
मूल रूप में श्रीयन्त्र नौ यन्त्रों से मिलकर एक बना है , इन नौ यन्त्रों को ही हम श्रीयन्त्र के नव आवरण के रूप में जानते हैं, श्री चक्र के नव आवरण निम्नलिखित हैं:-
1:- त्रैलोक्य मोहन चक्र.......- तीनों लोकों को मोहित करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
2:- सर्वाशापूरक चक्र.......- सभी आशाओं, कामनाओं की पूर्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
3:- सर्व संक्षोभण चक्र.......- अखिल विश्व को संक्षोभित करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
4:- सर्व सौभाग्यदायक चक्र........- सौभाग्य की प्राप्ति,वृद्धि करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
5:- सर्वार्थ सिद्धिप्रद चक्र.......- सभी प्रकार की अर्थाभिलाषाओं की पूर्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
6:- सर्वरक्षाकर चक्र........- सभी प्रकार की बाधाओं से रक्षा करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
7:- सर्वरोगहर चक्र.......- सभी व्याधियों, रोगों से रक्षा करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
8:- सर्वसिद्धिप्रद चक्र.......- सभी सिद्धियों की प्राप्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।
9:- सर्व आनंदमय चक्र.......- परमानंद या मोक्ष की प्राप्ति करने की क्षमता से परिपूर्ण चक्र है ।

इसके अतिरिक्त श्रीयन्त्र का एक रहस्य ओर है कि श्रीयन्त्र वेदों, कौलाचार व अगमशास्त्रों में उल्लेखित स्वयंसिद्ध भैरवी चक्र या संहार चक्र का ही विस्तृत स्वरूप है , श्रीयन्त्र के क्रमशः 7,8 व 9 वें (बिंदु, त्रिकोण और अष्टकोण) चक्र ही संयुक्त होकर मूल स्वयंसिद्ध भैरवी चक्र है , व बाहर के अन्य 1 से 6 तक के चक्र उसका सृष्टि क्रम में विस्तार मात्र है, इसीलिए श्रीचक्र या श्रीयन्त्र का समयाचार, दक्षिणाचार, व कौलाचार सहित अन्य सभी पद्धतियों से पूजन अर्चन किया जाता है !
श्रीयंत्र के ये नवचक्र सृष्टि, स्थिति और संहार चक्र के द्योतक हैं । अष्टदल, षोडशदल और भूपुर इन तीन चक्रों को सृष्टि चक्र कहते हैं। अंतर्दशार, बहिर्दशार और चतुर्दशार स्थिति चक्र कहलाते हैं। बिंदु, त्रिकोण और अष्टकोण को संहार चक्र कहते हैं। श्री श्री ललिता महात्रिपुर सुंदरी श्री लक्ष्मी जी के यंत्रराज श्रीयंत्र के पिंडात्मक और ब्रह्मांडात्मक होने की बात को जो साधक जानता है वह योगीन्द्र होता है ।

श्रीयंत्र ब्रह्मांड सदृश्य एक अद्भुत यंत्र है जो मानव शरीर स्थित समस्त शक्ति चक्रों का भी यंत्र है। श्रीयंत्र सर्वशक्तिमान होता है। इसकी रचना दैवीय है। अखिल ब्रह्मांड की रचना का यंत्र होने से इसमें संपूर्ण शक्तियां और सिद्धियां विराजमान रहती हैं। स्व शरीर को एवं अखिल ब्रह्मांड को श्रीयंत्र स्वरूप जानना बड़े भारी तप का फल है। इन तीनों की एकता की भावना से शिवत्व की प्राप्ति होती है तथा साधक अपने मूल आत्मस्वरूप को प्राप्त कर लेता है ।

श्री यंत्र का आध्यात्मिक स्वरूप
पूर्ण विधान से श्री यंत्र का पूजन जो एक बार भी कर ले, वह दिव्य देहधारी हो जाता है। दत्तात्रेय ऋषि एवं दुर्वासा ऋषि ने भी श्री यंत्र को मोक्षदाता माना है। इसका मुख्य कारण यह है कि मनुष्य शरीर की भांति, श्री यंत्र में भी 9 चक्र होते हैं। पहला चक्र मनुष्य शरीर में मूलाधार चक्र होता है। शरीर में यह रीढ़ की हड्डी के सबसे नीचे के भाग में, गुदा और लिंग के मध्य में है। श्री यंत्र में यह अष्ट दल होता है। यह रक्त वर्ण पृथ्वी तत्व का द्योतक है। इसके देव ब्रह्मा हैं और यह लिंग स्थान के सामने है। श्री यंत्र में इसकी स्थिति चतुर्दशार चक्र में बनी होती है। यह जल तत्व का द्योतक है। इसके देव विष्णु भगवान हैं। तीसरा चक्र मेरु दंड के अंदर होता है। यह दश दल का होता है। श्री यंत्र में यह त्रिकोण है और अग्नि तत्व का द्योतक होता है। यंत्र के देव बुद्ध रुद्र माने गये हैं। चैथा चक्रअनाहत चक्र होता है। मनुष्य शरीर में यह हृदय के सामने होता है। यह द्वादश दल का है। श्री यंत्र में यह अंतर्दशार चक्र कहा जाता है। यह वायु तत्व का द्योतक माना जाता है। इसके देव ईशान रुद्र माने गये हैं। पांचवां चक्र विशुद्ध चक्र होता है। मनुष्य शरीर में यह कंठ में होता है। यह 16 दल का है। श्री यंत्र में यह अष्टकोण होता है। यह आकाश तत्व का द्योतक माना गया है। इसके देव भगवान शिव माने जाते हैं। छठा चक्र आज्ञा चक्र होताहै। मनुष्य शरीर में यह मेरुदंड के अंदर ब्रह्म नाड़ी में माना गया है। यह 2 दलों का है। श्री यंत्र में इसकी स्थिति त्रिकोण की मानी जाती है। सातवां चक्र सहस्त्रार होता है जिसे श्रीचक्र में बिंदु से दर्शाया गया है ।


03 June 2016

रोटी का कर्ज

पत्नी बार बार मां पर इल्जाम लगाए जा
रही थी और पति बार बार उसको अपनी हद में
रहने की कह रहा था
लेकिन पत्नी चुप होने का नाम ही नही ले
रही थी व् जोर जोर से चीख चीखकर कह रही
थी कि
"उसने अंगूठी टेबल पर ही रखी थी और तुम्हारे
और मेरे अलावा इस कमरें मे कोई नही आया
अंगूठी हो ना हो मां जी ने ही उठाई है।।
बात जब पति की बर्दाश्त के बाहर हो गई तो
उसने पत्नी के गाल पर एक जोरदार तमाचा दे
मारा
अभी तीन महीने पहले ही तो शादी हुई थी ।
पत्नी से तमाचा सहन नही हुआ
वह घर छोड़कर जाने लगी और जाते जाते पति
से एक सवाल पूछा कि तुमको अपनी मां पर
इतना विश्वास क्यूं है..??
तब पति ने जो जवाब दिया उस जवाब को
सुनकर दरवाजे के पीछे खड़ी मां ने सुना तो
उसका मन भर आया पति ने पत्नी को बताया
कि
"जब वह छोटा था तब उसके पिताजी गुजर गए
मां मोहल्ले के घरों मे झाडू पोछा लगाकर जो
कमा पाती थी उससे एक वक्त का खाना
आता था
मां एक थाली में मुझे परोसा देती थी और
खाली डिब्बे को ढककर रख देती थी और
कहती थी मेरी रोटियां इस डिब्बे में है
बेटा तू खा ले
मैं भी हमेशा आधी रोटी खाकर कह देता था
कि मां मेरा पेट भर गया है मुझे और नही
खाना है
मां ने मुझे मेरी झूठी आधी रोटी खाकर मुझे
पाला पोसा और बड़ा किया है
आज मैं दो रोटी कमाने लायक हो गया हूं
लेकिन यह कैसे भूल सकता हूं कि मां ने उम्र के
उस पड़ाव पर अपनी इच्छाओं को मारा है,
वह मां आज उम्र के इस पड़ाव पर किसी अंगूठी
की भूखी होगी ....
यह मैं सोच भी नही सकता
तुम तो तीन महीने से मेरे साथ हो
मैंने तो मां की तपस्या को पिछले पच्चीस
वर्षों से देखा है...
यह सुनकर मां की आंखों से छलक उठे वह समझ
नही पा रही थी कि बेटा उसकी आधी
रोटी का कर्ज चुका रहा है या वह बेटे की
आधी रोटी का कर्ज...

अगर तुम अपने को शिवयोगी कहते हो


"अगर तुम यह कहते हो की मैं शिवानंद का शिष्य हूँ, अगर तुम अपने को शिवयोगी कहते हो, तो उसके जैसी perfection ला कर दिखाओ| अपने यौवन में जब बाबाजी boxer थे तब उन्होंने जम के boxing करी| तब उन्होंने अपना धर्म निभाया, तब उन्होने यह नही कहा की भाई मैं तो प्यार का सागर हूँ, मैं कैसे किसी को आक्रमण कर सकता हूँ? उन्होने तब जो भी किया वो उनका धर्म था| और यही नहीं, जीवन के हर मोड़ पर उन्होने अपना सर्वोत्तम प्रदर्शन किया| चाहे वह अपनी पत्नी से प्रेम करने की ही बात क्यों ना हो| जब गुरु माँ उनके जीवन में आईं, उन्होने यह नही कहा की मैं तो वैरागी हूँ, मैं तो परम ज्ञानी हूँ, मैं सिर्फ़ साधना करूँगा| उन्होने पलायन का मार्ग कभी नहीं चुना| तो तुम यह कैसे कह सकते हो की तुम्हे परिवार से भिन्न होना है? उन्होने स्वयं पारिवारिक माहौल में रह कर अपनी उन्नति करी ताकि कोई यह न कहे की परिवार त्याग कर ही स्वयं को जागृत करना संभव है| तुम सभी शिवयोग का बीड़ा उठाए हुए हो, तुम पर ज़िम्मेदारी है| एक शिष्य की पहचान गुरु से तो है ही है किंतु एक गुरु का भी परिचय उसके शिष्य से है| शिवयोगी होने के नाते तुम बाबाजी का नेतृत्व करते हो| एक शिवयोगी का परिचय यह है की वह १) दिल का मज़बूत होता है| २) मासूमियत और प्रेम की प्रतिमूर्ति होता है| ३) अपने सिद्धांतों का पक्का होता है| ४) चरित्र का पवित्र होता है| ५) साधना में तपस्वी होता है| धर्म की आड़ में किसी को परेशान करना और धर्म के डंडे से परिवार से भिन्न होने की बात करना कदापि नहीं है शिवयोग| बाबाजी ने अपने हर संबंध का धर्म बखूबी निभाया - चाहे वह पिता का हो, चाहे वह एक पति का हो और, जैसा की तुम मुझसे बेहतर बताओगे, एक गुरु का| और यह भी याद रखो की एक सिद्ध, एक अवधूत मार्गदर्शन करने हेतु जन्म लेता है, अपनी पूजा करवाने के लिए नहीं| और तुम भी बाबाजी की जीवन शैली से सीखना| नहीं तो तुम भी वही करोगे जो सारी दुनिया कर रही है - भगवान को मंदिरों में बंद करने की प्रथा मानो कारावास में डाल दिया हो| बाबाजी के जीवन से सीख लो| प्रेममय बनो, करुणामय बनो| गुरु को साधारण जीव जानो| Judge मत करो की वह क्या कर रहा है, क्या खा रहा है, वह क्या पहन रहा है, कैसे वेश में है, क्या उसका बोलने का ढंग है| तुम केवल और केवल उसकी दी हुई सीखों को अपने भीतर अंतरसात करो| सिर्फ़ उससे मार्गदर्शन की प्रार्थना करो| उसके दिव्य सागर से कुछ ज्ञान अर्जन की कामना करना| गुरु को लक्ष्य के रूप में देखो, की मुझे ऐसा बनना है और यह कैसे होगा, हिमालय पर जाकर नहीं, किंतु अपने भीतर का हिमालय जागृत करो क्योंकि आज न वह हिमालय बचा है जिसका वर्णन शस्त्रों में है और न ही आज वह परिस्थतियाँ हैं जो की तुम्हे यह अवसर प्रदान करें की तुम जंगलों में रह कर भी जी लोगे| और मैं कहता हूँ ज़रूरत भी क्या है? जब तुम्हारा गुरु संसार में रह कर शिवानंद बना तो तुम्हे परिवार में रहना ही रहना है| अपने मन में गुरु की एक काल्पनिक छवि मत बनाना नहीं तो भाव यही आएगा की यह अध्यात्मिक उन्नति और आत्म साक्षात्कार तो दूर दराज़ किसी दुनिया की बातें हैं और मुझसे नहीं होगा यह सब| सामान्य बनो| तुम्हारा गुरु भी एक साधारण जीव ही है| वह भी वैसे ही ख़ाता है, सोता है और नित्य क्रियाएं करता है| ऐसा नहीं है की यदि उसको भोजन करना होता है तो वह भगवान से प्रार्थना करने लगता है की यह भोजन अपने आप मेरे मुख में चले जाए| वह सारे वही कार्य करता है जो सब तुम सब करते हो| इसीलिए कहता हूँ की कर्मठ बनो, त्याग की बात इस समय मत करो| कुछ त्यागना ही है तो गुरु के चरणों में अपनी विकारों का त्याग करो| सिद्ध मार्ग है ही सरलता का मार्ग| हँसने की बात है तो हँसो, खाने की बारी है तो खाओ, परिवार को प्रेम देने की बारी है तो उनसे प्रेम करो| साधारण बनो, सरल बनो| जिस समय जो उचित है और जो तुम्हारा उत्तर्दायित्व है, उसे निभाओ| खुश रहो और सहजता से अपनी अध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करो| बच्चा बनने में अपना आनंद है, परम आनंद है| अब ऊँची पसंद और उँची सोच का मुखौटा मत पहनना| खुल के जीवन जीना| किसी भी भाव को संयम का रूप मत लेने देना| तुम्हारा गुरु बहुत सरल है| एक आम मनुष्य का जीवन जीकर सिद्धत्व को प्राप्त किया है उसने| तो क्या तुम्हें पलायन करने की आवश्यकता है?

29 May 2016

ध्यान विधि | Meditation


ध्यान विधि | Meditation



कैसे करें ध्यान?
यह महत्वपूर्ण सवाल है। यह उसी तरह है कि हम पूछें कि कैसे श्वास लें, कैसे जीवन जीएं, आपसे सवाल पूछा जा सकता है कि क्या आप हंसना और रोना सीखते हैं या कि पूछते हैं कि कैसे रोएं या हंसे? सच मानो तो हमें कभी किसी ने नहीं सिखाया की हम कैसे पैदा हों। ध्यान हमारा स्वभाव है, जिसे हमने चकाचौंध के चक्कर में खो दिया है।
ध्यान के शुरुआती तत्व-
1. श्वास की गति
2.मानसिक हलचल
3. ध्यान का लक्ष्य
4.होशपूर्वक जीना।
उक्त चारों पर ध्यान दें तो तो आप ध्यान करना सीख जाएंगे।

श्वास का महत्व :
ध्यान में श्वास की गति को आवश्यक तत्व के रूप में मान्यता दी गई है। इसी से हम भीतरी और बाहरी दुनिया से जुड़े हैं। श्वास की गति तीन तरीके से बदलती है-
1.मनोभाव
2.वातावरण
3.शारीरिक हलचल।
इसमें मन और मस्तिष्क के द्वारा श्वास की गति ज्यादा संचालित होती है। जैसे क्रोध और खुशी में इसकी गति में भारी अंतर रहता है।श्वास को नियंत्रित करने से सभी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसीलिए श्वास क्रिया द्वारा ध्यान को केन्द्रित और सक्रिय करने में मदद मिलती है।
श्वास की गति से ही हमारी आयु घटती और बढ़ती है। ध्यान करते समय जब मन अस्थिर होकर भटक रहा हो उस समय श्वसन क्रिया पर ध्यान केन्द्रित करने से धीरे-धीरे मन और मस्तिष्क स्थिर हो जाता है और ध्यान लगने लगता है। ध्यान करते समय गहरी श्वास लेकर धीरे-धीरे से श्वास छोड़ने की क्रिया से जहां शरीरिक , मानसिक लाभ मिलता है,
मानसिक हलचल :
ध्यान करने या ध्यान में होने के लिए मन और मस्तिष्क की गति को समझना जरूरी है। गति से तात्पर्य यह कि क्यों हम खयालों में खो जाते हैं, क्यों विचारों को ही सोचते रहते हैं या कि विचार करते रहते हैं या कि धुन, कल्पना आदि में खो जाते हैं। इस सबको रोकने के लिए ही कुछ उपाय हैं- पहला आंखें बंदकर पुतलियों को स्थिर करें। दूसरा जीभ को जरा भी ना हिलाएं उसे पूर्णत: स्थिर रखें। तीसरा जब भी किसी भी प्रकार का विचार आए तो तुरंत ही सोचना बंद कर सजग हो जाएं। इसी जबरदस्ती न करें बल्कि सहज योग अपनाएं।
निराकार ध्यान-
ध्यान करते समय देखने को ही लक्ष्य बनाएं। दूसरे नंबर पर सुनने को रखें। ध्यान दें, गौर करें कि बाहर जो ढेर सारी आवाजें हैं उनमें एक आवाज ऐसी है जो सतत जारी रहती है आवाज, फेन की आवाज जैसी आवाज या जैसे कोई कर रहा है ॐ का उच्चारण। अर्थात सन्नाटे की आवाज। इसी तरह शरीर के भीतर भी आवाज जारी है। ध्यान दें। सुनने और बंद आंखों के सामने छाए अंधेरे को देखने का प्रयास करें। इसे कहते हैं निराकार ध्यान।
आकार ध्यान-
आकार ध्यान में प्रकृति और हरे-भरे वृक्षों की कल्पना की जाती है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि किसी पहाड़ की चोटी पर बैठे हैं और मस्त हवा चल रही है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि आपका ईष्टदेव आपके सामने खड़ा हैं। 'कल्पना ध्यान' को इसलिए करते हैं ताकि शुरुआत में हम मन को इधर उधर भटकाने से रोक पाएं।
होशपूर्वक जीना:
क्या सच में ही आप ध्यान में जी रहे हैं? ध्यान में जीना सबसे मुश्किल कार्य है। व्यक्ति कुछ क्षण के लिए ही होश में रहता है और फिर पुन: यंत्रवत जीने लगता है। इस यंत्रवत जीवन को जीना छोड़ देना ही ध्यान है।जैसे की आप गाड़ी चला रहे हैं, लेकिन क्या आपको इसका पूरा पूरा ध्यान है कि 'आप' गाड़ी चला रहे हैं। आपका हाथ कहां हैं, पैर कहां है और आप देख कहां रहे हैं। फिर जो देख रहे हैं पूर्णत: होशपूर्वक है कि आप देख रहे हैं वह भी इस धरती पर। कभी आपने गूगल अर्थ का इस्तेमाल किया होगा। उसे आप झूम इन और झूम ऑउट करके देखें। बस उसी तरह अपनी स्थिति जानें। कोई है जो बहुत ऊपर से आपको देख रहा है। शायद आप ही हों।
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ध्यान योग की सरलतम विधियां | Easiest methods of yoga
ध्यान करने की अनेकों विधियों में एक विधि यह है कि ध्यान किसी भी विधि से किया नहीं जाता, हो जाता है। ध्यान की हजारों विधियां बताई गई है। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा साधु संगतों में अनेक विधि और क्रियाओं का प्रचलन है। विधि और क्रियाएं आपकी शारीरिक और मानसिक तंद्रा को तोड़ने के लिए है जिससे की आप ध्यानपूर्ण हो जाएं।

ध्यान की हजारों विधियां हैं। शंकर ने माँ पार्वती को 112 विधियां बताई थी जो 'विज्ञान भैरव तंत्र' में संग्रहित हैं। इसके अलावा Vedas, Puran और Upnishad में ढेरों विधियां है। संत, महात्मा विधियां बताते रहते हैं। किसी भी सुखासन में आंखें बंदकर शांत व स्थिर होकर बैठ जाएं। फिर बारी-बारी से अपने शरीर के पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक अवलोकन करें। इस दौरान महसूस करते जाएं कि आप जिस-जिस अंग का अलोकन कर रहे हैं वह अंग स्वस्थ व सुंदर होता जा रहा है। यह है सेहत का रहस्य। शरीर और मन को तैयार करें ध्यान के लिए।
1 ध्यान दिन में एक या दो बार करें। कमर सीधी रखकर एक कुर्सी पर बैठें। अगर जमीन पर बैठना सुविधाजनक है तो चौकडी मार कर बैठें। सिर ऊंचा रखें, और ध्यान सिर के उपर या मस्तिश्क में आगे की ओर रखें।
2 सिद्धासन में आंखे बंद करके बैठ जाएं। फिर अपने शरीर और मन पर से तनाव हटा दें अर्थात उसे ढीला छोड़ दें। बिल्कुल शांत भाव को महसूस करें। महसूस करें कि आपका संपूर्ण शरीर और मन पूरी तरह शांत हो रहा है। नाखून से सिर तक सभी अंग शिथिल हो गए हैं। इस अवस्था में 10 मिनट तक रहें। यह काफी है साक्षी भाव को जानने के लिए।
3 आराम महसूस करने के लिये एक या दो बार शवास अन्दर लें और बाहर निकालें। कुछ समय के लिये स्थिर रहें जब तक आपको केन्द्रित लगे। अपने प्राकृतिक साँस लेने की ताल से अवगत रहें।
4 जब साँस अन्दर लेना स्वाभाविक लगे, तो मन में एक अपने चुने हुए शब्द जैसे कि "भगवान," "शांति," "आनन्द," या कोई और सुखद शब्द को बोलें। जब साँस छोड़ें तो फिर मन में उसी शब्द को बोलें। यह अनुभव करें कि आपका चुना हुआ शब्द आपके मन में बड रहा है और आपका जागरूकता का क्षेत्र भी बड रहा है। इसे बिना प्रयास के और बिना परिणाम की चिंता से करें।
5 जब मन शान्त हो जाए, तब आप शब्द को सुनना बंद कर दें। मन स्थिर रखें और ध्यान अभ्यास की शान्ति कई मिनट के लिए अनुभव करें, और जब ठीक समझें तो ध्यान समाप्त कर दें।
उपरोक्त ध्यान विधियों के दौरान वातावरण को सुगंध और संगीत से तरोताजा और आध्यात्मिक बनाएं।
श्री कृष्ण अर्जुन संवाद :****** श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा: शुद्ध एवं एकांत स्थान पर कुशा आदि का आसन बिछाकर सुखासन में बैठें. अपने मन को एकाग्र करें. मन व इन्द्रियों की क्रियाओं को अपने वश में करें, जिससे अंतःकरण शुद्ध हो. इसके लिए, सर व गर्दन को सीधा रखें और हिलाएं-दुलायें नहीं. आँखें बंद रखें व साथ ही जीभ को भी न हिलाएं. अब अपनी आँख की पुतलियों को भी इधर-उधर नहीं हिलने दें और उन्हें एकदम सामने देखता हुआ रखें. एकमात्र ईश्वर का स्मरण करते रहें. ऐसा करने से कुछ ही देर में मन शांत हो जाता है और ध्यान आज्ञा चक्र पर स्थित हो जाता है और परम ज्योति स्वरुप परमात्मा के दर्शन होते हैं.
विशेष :**** ध्यान दें जब तक मन में विचार चलते हैं तभी तक आँख की पुतलियाँ इधर-उधर चलती रहती हैं. और जब तक आँख की पुतलियाँ इधर-उधर चलती हैं तब तक हमारे मन में विचार उत्पन्न होते रहते हैं. जैसे ही हम मन में चल रहे समस्त विचारों को रोक लेते हैं तो आँख की पुतलियाँ रुक जाती हैं. इसी प्रकार यदि आँख की पुतलियों को रोक लें तो मन के विचार पूरी तरह रुक जाते हैं. और मन व आँख की पुतलियों के रुकते ही आत्मा का प्रभाव ज्योति के रूप में दीख पड़ता है.


11 May 2016

ख़्वाब अगर है तो ज़िंदा रहे

ख़्वाब अगर है तो ज़िंदा रहे 

 "एक ख्वाब का पन्ना दिल में था जो दिल में था वो कोरा था जो कोरा मैं भरने को निकला समझ समझ के जो मैं समझा वो ख्वाब जीवन का एक मोहरा था " वक्त बीतता जा रहा है लम्हों का बेशब्री से इन्तजार करने की आदतों का लम्हा खुद शिकार करने लगा है । कल की तरह आज भी सूरज की वो दहकती रश्मियाँ उतनी ही ब्याकुलता से मेरे ऊपर गिरी जैसे की आषाढ़ में वो हर किसी के ऊपर कहर बनके गिरती है। खैर जो भी हो इन तपते धूप में बैठा मैं एक ख्वाब में डूबा था कि क्या समय ने मेरे हौसले का शिकार कर लिया है ? क्या मेरी परछाई एक ज़िंदा लाश की है ? इन्ही सवालों में उलझते हुए मैं अपने ख्वाब की दुनिया में प्रवेश कर गया । अब सिर्फ मैं हक़ीक़त में मात्र एक परछाई था क्योंकि सही सन्दर्भ में मै अपने ख़्वाबों की दुनिया का एक बेहतरीन किरदार बन चुका था । मेरे ख़्वाब मजबूत होते जा रहे थे और रंगमंज पे मेरे अभिनय से तालियां की गड़गड़ाहट मेरे अभौतिक शरीर को आत्मिक ख़ुशी दे रही थी । मैं अपने चारों तरफ के वास्तविक परिवेश से काफ़ी दूर जा चुका था क्योंकि भाष्कर की पुकार का अब हमपे कोई असर नहीं था । सुबह इस काया पे गिरते रश्मियों ने जो चिलचिलाहट का निशान छोड़ा था वो अब गायब हो चुका था , हमारा काल्पनिक पर सशक्त दुनिया इतना ताक़तवर हो चुका था कि हमे पता ही नहीं चला कब प्रातःकालीन सूरज अपने सायंकालीन गृह में प्रवेश कर गया । चारों तरफ सन्नाटा पसरता जा रहा था और खामोशियाँ बार बार हमपे प्रहार करने लगी थी लेकिन मुझमे इतनी दरियादिली नहीं बची थी कि मैं अपने ख़याली दुनिया के अपने अभिनय को बीच में ही खंडित कर घर को लौट चलु ,सही कहु तो ये सम्भव भी नहीं था क्योंकि मैं इतना अंदर घुस चुका था कि एक झटके में बाहर आना दुष्कर था । मैंने सोचा क्यों न पूरा अभिनय करके ही बाहर आया जाय और इसी कश्मकश्म में मैं खुद को बेहतर साबित करने के लिए उसमे डूबता गया । मुझे स्पष्ट तो याद नहीं पर एक धुंधली से छवि मेरे सामने जरूर है । मैं एक अनजान राश्ते का मुसाफ़िर था जहाँ ख़ामोशी के सिवाय कोई मेरे साथ नहीं था । एक दूर खंड से बुझती हुई लौ में मैं बड़ी मुश्किल से खुद के पाओं को आपस में टकराने से रोक पा रहा था । मेरे पैरों को उस समय कुछ पीछे खिंच रहा था और वो बड़ा होता जा रहा था वो मेरे अंदर के भय को बढ़ाता जा रहा था ।जैसे जैसे एक एक कदम मैं आगे बढ़ रहा था मेरे आँखों के सामने अन्धेरा होता जा रहा था फिर भी मेरे सामने बढ़ने के सिवाय कोई विकल्प न था । मुझे बस जल्द से जल्द रौशनी के परिधी में शामिल होना था और मिटते हुए राश्ते को जल्द से जल्द खत्म करना था लेकिन अभी मै इनसब से बहुत दूर था ।उस वक्त मेरे हाथ में एक डण्डा था और जब जल्दबाजी के चक्कर में मैं गिरता था तो वो छड़ी भी गिर जाती थी और जब मैं उठता था तो उसे भी उठा लेता था मुझे समझना मुश्किल था कि आखिर ये मात्र डंडा था या फिर कोई उम्मीद या फिर कोई हौसला फिर भी न जाने मै क्यों उस डंडे को ढो रहा था । बात यही पे खत्म नहीं होती है अँधेरा अपनी हद पार कर रहा था वो मेरे चेहरों को दूर के लौ से दूर करने को आतुर था यहाँ भी हक़ीक़त में समझना मुश्किल था कि वो मात्र रौशनी का पुंज था या मेरा पूरा भविष्य जो भी हो अपनी ख़याली दुनिया में मैं बेशक वहां पहुचने को आतुर था ।एक बात तो मुझे साफ़ समझ आ रही थी कि जैसे जैसे मेरी लौ से निकटता बढ़ती जा रही थी मेरा दुश्मन जो मेरे पाँव को खिंच रहा था वो बढ़ा हो रहा था इसके बावजूद मैं आगे बढ़ रहा था यानि मेरी ताक़त बढ़ती जा रही थी शायद दृणइच्छा शक्ति के कारण ऐसा हो रहा था और ये चलने का सिलसिला आज भी यूँ ही ज़िंदा है । आज भी जब मैं एकांत में बैठता हु तो जैसे ही पलके गिरती है तत्क्षण वही अँधेरी गली वही सुनसान रास्ता वही अज्ञात भ्रमित भय और मेरे वही आगे बढ़ते रहने का जुनून दिखता है। ये मेरे ख्वाब भले आपको कपोल कल्पित लगे लेकिन एक सच तो जरूर है आपके मन मष्तिष्क में भी यही ख़यालात आता होगा। एक बात तो तय है कि हम मानव है हम गिरते है उठते है हम रोते है हँसते है हम अकड़ते है सिकुड़ते है इसलिए तो हम आगे बढ़ने के लिए लड़ते है । हमारी प्रकृति चोरी वोरी नहीं बल्कि जो अपने हक़ में है उसे लड़ के लेने की है । हमारे सामने तमाम अभाव होते है तमाम चुनौतियां होती है लेकिन हम उसे सहर्ष स्वीकार करते है क्योंकि हम मानव है हम जानते है कि कुछ बड़ा करने के लिय कुर्बानियाँ देनी होती है । हम अपने अभाव को अपना हथियार बनाते है और इसी से वो इतिहास लिख जाते है जिसका पन्ना किताबों में नहीं लोगों के दिलों में होता है ।वही कोरा पन्ना जिसे भरने के लिए हर कोई ब्याकुल व् आतुर रहता है । कोरा पन्ना हर किसी के सीने में है बस कुछ लोग अपने तूफानी कर्मों से सिर्फ खुद के ही नहीं वरन् अन्यों के पन्नों पे भी खुद का खिलता इतिहास लिख जाते है और कुछ लोग उपर्युक्त ख़्वाब का अँधेरी दास्तां खुद के पन्नों पे ही लिख के सिमट जाते है । अब निर्णय आपका कि क्या ख्वाब से हक़ीक़त का श्रृंगार करना है या ख़्वाब में लिपटकर सर पटक देना है ।मैं तो बस यही सोचता हु जो आपको समर्पित कर रहा हु ख्वाबों के सिलसिले से एक शहर बसानी है जहाँ होते है पुरे अरमां वो महल बनानी है कल का एक सच कि कल तो मिट जाएगा जो रहे वर्षों तक ज़िंदा ,कोरे पन्नों पे वो लहू लगानी है ।

04 May 2016

koi lauta de wo pyare pyare din.....

isko kahte hai masti k sath zindagi jina.....

koi lauta de wo pyare pyare din.....

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08 April 2016

New year january vs April ?

New year january vs April ?
(सम्वत 2073= 8 अप्रेल 2016 से शुरू)

5 मिनट अपनी सस्कृति की झलक को पढ़े।
◆1 जनवरी को क्या नया हो रहा है?
◆न ऋतू बदली ...न मौसम!
◆न कक्षा बदली... न सत्र!
◆न फसल बदली...न खेती!
◆न पेड़ पोधों की रंगत!
◆न सूर्य चाँद सितारों की दिशा!
◆ना ही नक्षत्र!!
◆1 जनवरी आने से पहले ही सब नववर्ष की बधाई देने लगते हैं।मानो कितना बड़ा पर्व है।
◆नया एक दिन का नही होता कुछ दिन तो नई अनुभूति होंनी ही चाहिए। हमारा देश त्योहारों का देश है।
◆ईस्वी संवत का नया साल 1जनवरी को और भारतीय नववर्ष ( विक्रमी संवत)चैत्र शुक्ल प्रति
पदा को मनाया जाता है।
आईये देखते हैं दोनों का तुलनात्मक अंतर।
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1-प्रकृति
1जनवरी कोई अंतर नही जैसा दिसम्बर वैसी जनवरी। चैत्र मास में चारो तरफ फूल खिल जाते हैं, पेड़ो पर नए पत्ते आ जाते हैं।चारो तरफ हरियाली मानो प्रकृति नया साल मना रही हो।
2- वस्त्र
दिसम्बर और जनवरी में व्ही उनी वस्त्र।कंबल रजाई ठिठुरते हाथ पैर चैत्र मास में सर्दी जा रही होती है
गर्मी का आगमन होने जा रहा होता है ।
3- विद्यालयो का नया सत्र
दिसंबर जनवरी वही कक्षा कुछ नया नही। जबकि मार्च अप्रैल में स्कूलो का रिजल्ट आता है नई कक्षा नया सत्र यानि विद्यालयों में नया साल।
4- नया वित्तीय वर्ष
दिसम्बर जनबरी में कोई खातो की क्लोजिंग नही होती। जबकि 31 मार्च को बैंको की(audit) कलोसिंग होती है नए वही खाते खोले जाते है।
सरकार का भी नया सत्र शुरू होता है।
5- कलैण्डर
जनवरी में नया कलैण्डर आता है। चैत्र में नया पंचांग आता है उसी से सभी भारतीय पर्व, विवाह और अन्य महूर्त देखे जाते हैं ।
इसके बिना हिन्दू समाज जीबन की कल्पना भी नही कर सकता इतना महत्व पूर्ण है ये कैलेंडर यानि पंचांग।
6- किसानो का नया साल
दिसंबर जनवरी में खेतो में व्ही फसल होती है
जबकि मार्च अप्रैल में फसल कटती है नया अनाज घर में आता है तो किसानो का नया वर्ष का उतसाह ।
7- पर्व मनाने की विधि
31 दिसम्बर की रात नए साल के स्वागत के लिए लोग जमकर मदिरा पान करते है, हंगामा करते है ,रात को पीकर गाड़ी चलने से दुर्घटना की सम्भावना, रेप जैसी बारदात,पुलिस प्रशासन बेहाल,और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश जबकि भारतीय नववर्ष व्रत से शुरू होता है पहला नवरात्र होता है घर घर मे माता रानी की पूजा होती है।
शुद्ध सात्विक वातावरण बनता है।
8- ऐतिहासिक महत्त्व
1 जनवरी का कोई ऐतेहासिक महत्व नही है
जबकि चैत्र प्रतिपदा के दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् की शुरुआत भगवान झूलेलाल का जन्म।
♥नवरात्रे प्रारंम्भ,ब्रहम्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना, इत्यादि का संबंध इस दिन से है।
♥अंग्रेजी कलेंडर की तारीख और अंग्रेज मानसिकता के लोगो के अलावा कुछ नही बदला....
♥अपना नव संवत् ही नया साल है।
♥जब ब्रह्माण्ड से लेकर सूर्य चाँद की दिशा,मौसम,फसल,कक्षा,नक्षत्र,पौधों की नई पत्तिया,किसान की नई फसल,विद्यार्थी की नई कक्षा,मनुष्य में नया रक्त संचरण आदि परिवर्तन होते है। जो विज्ञान आधारित है।
♥अपनी मानसिकता को बदले।
विज्ञान आधारित भारतीय काल गणना को पहचाने।
♥स्वयं सोचे की क्यों मनाये हम 1 जनवरी को नया वर्ष केबल कैलेंडर बदलें। अपनी संस्कृति नही।
■आओ जगे जगाये,
■भारतीये संस्कृति अपनाये। और आगे बढ़े।
■हम 8 अप्रैल 2016 को हिन्दू नववर्ष बना रहे है।
आप भी मनाए,और को भी बताए।
☆2073 चैत मास☆
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भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये।
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