Baba ji said that hatred is caused by the following factors:
Expectations-When we expect others to do something for us or when we live in the hope of a certain kind of behaviour of others towards us, certain kind of respect towards us and anticipate a particular attitude to us as per the image we have made of the person in our minds and when the aforementioned aspects are not fulfilled, it induces a feeling of revulsion and hatred which chokes the Anahat chakra. He pointed out that one must be a free person. No expecting from anyone. No creating boundaries of Karma for either yourself or others.
-Inferiority complex- Whenever a person belittles us or rises more than us, we feel envy. The root emotion of envy is hatred. Love can never breed jealousy. It is repulsion and deep disgust which evoke jealousy. Baba ji said that contentment with whatever you get and gratitude for the same to Shiva will help one overcome such a vice.
Superiority complex -Most of the times we are pining for the object which the other person has or possesses rather than materialising good for ourselves. The classic case of Uski kameez meri kameez se safed kyun demonstrates this mentality to the hilt. We feel we must be bigger than others, richer than others etc. We do not think we should be happy. We think we must be ahead in any and every respect vis a vis others. We compare. We envy. We sulk. We curse God. This is wrong.
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“जीवन में goal बनाओ और अपने से पूछो what is the price I’m ready to pay to achieve this goal?”
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“एक बार की बात है एक व्यक्ति था, वह इतनी भारी गाय को उठा लेता था|लोग हैरान होते थे| एक दिन किसी ने आकर उससे पूछा भाई तुम कैसे इतनी वज़नदार गाय को उठा लेते हो? तो हंस कर कहने लगा 'मित्र जब मैं छोटा था तो इस गाय का जन्म हुआ| जब यह बछड़ा थी तभी से इसे मैं हर रोज़ उठाता था| यह बड़ी होती गई पर मेरी इसको रोज़ उठाने की आदत नहीं गयी| फलस्वरूप अब मैं इसे बछड़ा समझ कर उठा लेता हूँ| This is the power of the belief system and regularity. जीवन में एक persistence लाओ| एक कार्यशैली बनाओ और उस पर अमल करो| हर रोज़ एक ही समय पर अपना हर कार्य करो| तुम्हारा शरीर आदि हो जाएगा| साधना में नियम का पालन करना और भी फलदायी है| एक ही समय पर साधना करके देखो| तुम खुद मेरे पास आओगे की हाँ बाबा जी बहुत फरक है अनुशासित जीवन में और अनुशासंहीन ज़िंदगी में|"
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“Bed पर बैठ कर कभी साधना मत करना| जब हम सोते हैं तो etheric waste emit करते हैं| Bed पर साधना करने से वह energy आपकी energy को खाएगी और साधना का लाभ नहीं मिल पाएगा|”
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DISCIPLINE IN LIFE
1 “मेरा यह एक कथन अपने कमरे में लिख कर लगा लो: ‘Everyday I have to become better and better. Everyday in every way I’m better than yesterday.’
2.
"हर रोज़ जब भी उठो तो प्रयास करना की कल के मुक्काब्ले आज तुम और अच्छे इंसान बनो|”
3.
“नेत्र खुलते ही शैय्या त्याग दिया करो| पासे पलटना और आलस करना तुम्हारे लिए नहीं है|”
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“जब मैं तुम्हें दिल खोलकर शक्ति दे रहा हूँ तो तुम्हें बाहर जाने की क्या ज़रूरत है ? बाबा अपने बच्चों को अनंत प्रेम करता है और अपना जीवन उन्ही की सेवा में लगाता है|मेरी मानो यदि तुम प्रति दिन साधना करते हो और नियम पूर्वक शिव योग के सभी सिद्धांतों का पालन करते हो, मैं तुम्हें guarantee देता हूँ की इसी जन्म में आत्म साक्षात्कार होना ही होना है| कहाँ भागते फिरते हो ? किन पाखंडियों के लोभ में आते हो ?”
6.
“यदि कोई भी तुम्हें यह कहता है की बाबा जी का message देना है तो कभी विश्वास नहीं करना| मुझे यदि कोई भी message देना होगा, तो मैं स्वयं तुम्हे officially बताऊँगा| कहा सुनी पर यकीन नहीं करना|”
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If you are reading this, you are lucky enough to possess a human body and a Guru like Avadhoot Shivanand ji. Never again will such a golden opportunity throw itself upon you and plead to have it seized. This is the time. This is the age. Sadhna is the only way to make life peaceful, tranquil, prosperous and happy.
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“साधक बनो तो घमंड नहीं लाना| एक सामान्य जीवन जियो और किसी से अपनी साधना के बारे में ज़िक्र भी मत करो|”
“जहाँ भी यह श्री विद्या ३ साधना होएगी, वहाँ की भूमि सुरक्षित हो जाएगी
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“जो लोग healing करते हैं उनको मैं यह बताना चाहूँगा की इसको करते समय कभी यह भाव नहीं लाना की तुम किसी को ठीक कर रहे हो| भाव यह लाना की तुम माँ आद्याशक्ति से प्रार्थना कर रहे हो और वह अपनी दिव्य ऊर्जा से सब कर रही हैं| ठान कर healing नहीं करना| कुछ साधक कहते हैं नहीं मैं तो ठीक करके ही दम लूँगा| ऐसा कभी नहीं करना| प्रकृति सबको ठीक करती है| तुम अपना काम करना| कुछ ज़बरदस्ती नहीं करना| विनम्र भाव से सिर्फ़ प्रार्थना करना और सारा भाव उस माँ संजीवनी में डाल देना जो सर्व दायिनि है|"
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“जैसी तुम्हारी energy होगी, वैसी ही घटनाएँ तुम्हारे साथ होंगी|”
“तुम्हारे मुख से निकला शब्द कभी किसी को आघात ना पहुँचाए”
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Yesterday a lady came on the mike and said, “नमः शिवाय बाबा जी| बाबा जी मेरी कमर में बहुत दर्द रहता है और मैं ज़्यादा देर के लिए बैठ भी नहीं पाती|” Baba ji replied, “चलो बेटा सच सच खेलते हैं|” (All sadhaks including the lady started grinning). Then Baba ji through his omniscience asked, “बेटा सच सच बताओ तुम अपने भाईयों को सक्षम नहीं समझती तुम्हारा कुछ भी काम करने को?” The lady started smiling. Baba ji said, “बताओ बेटा सच है की नहीं?” The lady conceded on prodding, “हांजी बाबा जी”| Baba ji smiled and said, “बेटा उन्हें लायक समझो| प्रेम करो| सभी के साथ मिलकर काम करो| किसी को असमर्थ नहीं समझो| Then Baba ji looked towards the lady almost as if eager to reveal something more and averred, “अम्मा एक और बात बोल दूं? The lady smiled and nodded in agreement. To this Baba ji said, “तुम जिससे प्यार करती हो ना उससे शादी कर लो, सुखी और खुश रहोगी|” The lady blushed deliriously and very shyly thanked Baba ji, bringing a smile to the face of all. All the sadhaks were mesmerised by Baba ji’s clairvoyance, wit
and sense of humour.
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“अब तुम हीरे के ज़ोहरी बन गये हो| अब दर दर जाके ढिंढोरा नहीं पीटना की देखो मेरे पास कितने हीरे हैं आओ मुझे लूट लो| क्योंकि मैने जो शक्ति तुम्हारे भीतर स्थापित कर दी है अब वा तांत्रिकों और काई शक्टिओं के लिए अनमोल है| इन सब से बचना| अपना संकल्प मजबूत रखना| किसी दूसरी विद्दा के व्यवसायी के पास नहीं जाना|”
"गुरु की मर्यादा का पालन करना|"
“अपनी साधना प्रारंभ करने से पहले अपने गुरु को धन्यवाद देना क्योंकि यह उसी गुरु का तपोबल है जिस कारण आज तुम साधना सीख पाए हो और शक्ति ली पाए हो| गुरु ने ही बीज को व्रक्ष में परिवर्तित काइया जिसके फल तुम खा रहे हो| साधना से पूर्व गुरु से निवेदन करना की हे गुरुदेव मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ की आप मेरा मार्गदर्शन करो, मेरी रक्षा करो,मुझे काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार से मुक्ति दिलवाओ| हे गुरुदेव मैं आपका आवाहन करता हूँ|”
“जब मनुष्य मुक्ति के द्वार पर होता है तो माया उसे फिर पकड़ती है| प्रकृति उसकी परीक्षा लेती है| यदि तो तुम परीक्षा में fail हो जाते हो तो तुम्हारे संचित कर्म और भव्य रूप में तुम्हारे पास लौट आते हैं| इसीलिए उस शिव का नाम लेते रहना और काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार को अपने निकट नहीं आने देना| “
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“एक बात गाँठ बाँध लेना की जीवन में shortcut नहीं होते| कोई भी सांसारिक या आध्यात्मिक उपलब्धि को हासिल करना है तो ताप और परिश्रम तो करना ही होगा| आसानी से कुछ नहीं मिलेगा| मेहनत करनी ही होगी| पसीना बहाना ही होगा| साधना करनी ही होगी| यदि तुम्हे कोई यह कहे की पैसे देके तुम उच्च की साधनाएँ सीख सकते हो तो कभी विशास नहीं करना| सिद्ध मार्ग में कोई छोटा रास्ता नहीं होता| लगान,श्रद्धा, भक्ति और नियमितता अपने जीवन में लाकर देखो| मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है| रूपांतरण धीरे धीरे ही आएगा| Instant results की अपेक्षा नहीं करना| सहज पके सो मीठा|”
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“हर साधना के बाद सभी के लिए प्रार्थना करना| यह माँगना की सबका कल्याण हो, सभी का उत्थान हो
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"जब भी तुम किसी और के बनाए हुए भोजन का पान करते हो तो उसके आभारी और कर्ज़दार हो जाते हो
भोजन पकाने वाले को धन्यवाद प्रकट करने के साथ साथ प्रेम भी देना और किसी भी प्रकार की सेवा कभी भी देने से मुकरना नहीं
|किसी को खाना खिलाना एक बहुत बड़ा सौभाग्य है जिससे कार्मिक लेन-देन झट से पूरे होते हैं|"
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Baba ji also dwelt on the fact that infatuation and attachment to fellow humans,
worldly objects and desires brings about downfall and hence one must dispense with them.
Attention must at all times must be on the Supreme father---Shiva.
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“यदि कोई तुम्हे गाली देता है और तुम उसे गुस्से में आकर गाली भरा जवाब देते हो तो कर्म लगता है| तुम श्री विद्या साधक हो, अब और कर्म संचित नई करो|
कोई गाली दे तो बड़े प्यार से उसको नमन करना| क्षमा करना| उसमें भी शिव का उग्र रूप देखना| शिव के उस रूप को भी नमस्कार करना|ऐसा करने से और कर्म इकट्ठे नही करोगे और आध्यात्मिक विकास गति से होगा|”
भोजन पकाने वाले को धन्यवाद प्रकट करने के साथ साथ प्रेम भी देना और किसी भी प्रकार की सेवा कभी भी देने से मुकरना नहीं
|किसी को खाना खिलाना एक बहुत बड़ा सौभाग्य है जिससे कार्मिक लेन-देन झट से पूरे होते हैं|"
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Baba ji also dwelt on the fact that infatuation and attachment to fellow humans,
worldly objects and desires brings about downfall and hence one must dispense with them.
Attention must at all times must be on the Supreme father---Shiva.
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“यदि कोई तुम्हे गाली देता है और तुम उसे गुस्से में आकर गाली भरा जवाब देते हो तो कर्म लगता है| तुम श्री विद्या साधक हो, अब और कर्म संचित नई करो|
कोई गाली दे तो बड़े प्यार से उसको नमन करना| क्षमा करना| उसमें भी शिव का उग्र रूप देखना| शिव के उस रूप को भी नमस्कार करना|ऐसा करने से और कर्म इकट्ठे नही करोगे और आध्यात्मिक विकास गति से होगा|”
“तुम्हारी
energy और भगवान की energy equilibrium में flow होती रहनी चाहिए| पर अपने
विकारों में हम इतना लिपट जाते हैं की हमारी energy God energy तक पहुँच ही
नही पाती|
ऐसा होने पर ही करता भाव आता है| इसी कारण अहंकार की उत्पत्ति होती है| अपनी मैं के पीछे नहीं भागना|
ऐसा होने पर ही करता भाव आता है| इसी कारण अहंकार की उत्पत्ति होती है| अपनी मैं के पीछे नहीं भागना|
अपनी भावना शुद्ध रखना और
सब उस परमेश्वर पर छोड़ देना|
करता पुरुष एक ही है| गुरु नानक जी भी तो यही कहते थे 'एक ओंकार सतनाम करतापूरख...........'
करता पुरुष एक ही है| गुरु नानक जी भी तो यही कहते थे 'एक ओंकार सतनाम करतापूरख...........'
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कभी यह नहीं सोचना मैं नहीं होता तो इसका क्या होता ? या फिर मेरी वजह से आज वह इंसान इतना सुखी है| तुम सिर्फ़ निमित बनो और उस करता पुरुष को धन्यवाद देते रहो की हे प्रभु तुमने मुझे इतना सक्षम बनाया की मैं किसी की सेवा कर सकाऔर किसी का मेरे कारण भला हो सका|मुझ पर कृपा इतनी हो की मैं सभी के कल्याण का कारण बनू| ऐसा भाव रखोगे तो कभी कर्म दोष लग ही नहीं सकता|”
कभी यह नहीं सोचना मैं नहीं होता तो इसका क्या होता ? या फिर मेरी वजह से आज वह इंसान इतना सुखी है| तुम सिर्फ़ निमित बनो और उस करता पुरुष को धन्यवाद देते रहो की हे प्रभु तुमने मुझे इतना सक्षम बनाया की मैं किसी की सेवा कर सकाऔर किसी का मेरे कारण भला हो सका|मुझ पर कृपा इतनी हो की मैं सभी के कल्याण का कारण बनू| ऐसा भाव रखोगे तो कभी कर्म दोष लग ही नहीं सकता|”
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