"जब भी तुम किसी और के बनाए हुए भोजन का पान करते हो तो उसके आभारी और कर्ज़दार हो जाते हो
भोजन पकाने वाले को धन्यवाद प्रकट करने के साथ साथ प्रेम भी देना और किसी भी प्रकार की सेवा कभी भी देने से मुकरना नहीं
|किसी को खाना खिलाना एक बहुत बड़ा सौभाग्य है जिससे कार्मिक लेन-देन झट से पूरे होते हैं|"
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Baba ji also dwelt on the fact that infatuation and attachment to fellow humans,
worldly objects and desires brings about downfall and hence one must dispense with them.
Attention must at all times must be on the Supreme father---Shiva.
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“यदि कोई तुम्हे गाली देता है और तुम उसे गुस्से में आकर गाली भरा जवाब देते हो तो कर्म लगता है| तुम श्री विद्या साधक हो, अब और कर्म संचित नई करो|
कोई गाली दे तो बड़े प्यार से उसको नमन करना| क्षमा करना| उसमें भी शिव का उग्र रूप देखना| शिव के उस रूप को भी नमस्कार करना|ऐसा करने से और कर्म इकट्ठे नही करोगे और आध्यात्मिक विकास गति से होगा|”
“तुम्हारी energy और भगवान की energy equilibrium में flow होती रहनी चाहिए| पर अपने विकारों में हम इतना लिपट जाते हैं की हमारी energy God energy तक पहुँच ही नही पाती|
ऐसा होने पर ही करता भाव आता है| इसी कारण अहंकार की उत्पत्ति होती है| अपनी मैं के पीछे नहीं भागना|अपनी भावना शुद्ध रखना और सब उस परमेश्वर पर छोड़ देना|
करता पुरुष एक ही है| गुरु नानक जी भी तो यही कहते थे 'एक ओंकार सतनाम करतापूरख...........'|
कभी यह नहीं सोचना मैं नहीं होता तो इसका क्या होता ? या फिर मेरी वजह से आज वह इंसान इतना सुखी है| तुम सिर्फ़ निमित बनो और उस करता पुरुष को धन्यवाद देते रहो की हे प्रभु तुमने मुझे इतना सक्षम बनाया की मैं किसी की सेवा कर सका
और किसी का मेरे कारण भला हो सका|मुझ पर कृपा इतनी हो की मैं सभी के कल्याण का कारण बनू| ऐसा भाव रखोगे तो कभी कर्म दोष लग ही नहीं सकता|”
भोजन पकाने वाले को धन्यवाद प्रकट करने के साथ साथ प्रेम भी देना और किसी भी प्रकार की सेवा कभी भी देने से मुकरना नहीं
|किसी को खाना खिलाना एक बहुत बड़ा सौभाग्य है जिससे कार्मिक लेन-देन झट से पूरे होते हैं|"
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Baba ji also dwelt on the fact that infatuation and attachment to fellow humans,
worldly objects and desires brings about downfall and hence one must dispense with them.
Attention must at all times must be on the Supreme father---Shiva.
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“यदि कोई तुम्हे गाली देता है और तुम उसे गुस्से में आकर गाली भरा जवाब देते हो तो कर्म लगता है| तुम श्री विद्या साधक हो, अब और कर्म संचित नई करो|
कोई गाली दे तो बड़े प्यार से उसको नमन करना| क्षमा करना| उसमें भी शिव का उग्र रूप देखना| शिव के उस रूप को भी नमस्कार करना|ऐसा करने से और कर्म इकट्ठे नही करोगे और आध्यात्मिक विकास गति से होगा|”
“तुम्हारी energy और भगवान की energy equilibrium में flow होती रहनी चाहिए| पर अपने विकारों में हम इतना लिपट जाते हैं की हमारी energy God energy तक पहुँच ही नही पाती|
ऐसा होने पर ही करता भाव आता है| इसी कारण अहंकार की उत्पत्ति होती है| अपनी मैं के पीछे नहीं भागना|अपनी भावना शुद्ध रखना और सब उस परमेश्वर पर छोड़ देना|
करता पुरुष एक ही है| गुरु नानक जी भी तो यही कहते थे 'एक ओंकार सतनाम करतापूरख...........'|
कभी यह नहीं सोचना मैं नहीं होता तो इसका क्या होता ? या फिर मेरी वजह से आज वह इंसान इतना सुखी है| तुम सिर्फ़ निमित बनो और उस करता पुरुष को धन्यवाद देते रहो की हे प्रभु तुमने मुझे इतना सक्षम बनाया की मैं किसी की सेवा कर सका
और किसी का मेरे कारण भला हो सका|मुझ पर कृपा इतनी हो की मैं सभी के कल्याण का कारण बनू| ऐसा भाव रखोगे तो कभी कर्म दोष लग ही नहीं सकता|”
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