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कल जब मैं मर जाऊँगा (#Aalokry)

कल जब मैं मर जाऊँगा। तब तुम मेरे लिए आंसू बहाआगे  पर मुझे पता नही चलेगा तो  उसके बजाय  आज तुम मेरी इम्पॉर्टन्टस को महसूस क...

29 May 2016

ध्यान विधि | Meditation


ध्यान विधि | Meditation



कैसे करें ध्यान?
यह महत्वपूर्ण सवाल है। यह उसी तरह है कि हम पूछें कि कैसे श्वास लें, कैसे जीवन जीएं, आपसे सवाल पूछा जा सकता है कि क्या आप हंसना और रोना सीखते हैं या कि पूछते हैं कि कैसे रोएं या हंसे? सच मानो तो हमें कभी किसी ने नहीं सिखाया की हम कैसे पैदा हों। ध्यान हमारा स्वभाव है, जिसे हमने चकाचौंध के चक्कर में खो दिया है।
ध्यान के शुरुआती तत्व-
1. श्वास की गति
2.मानसिक हलचल
3. ध्यान का लक्ष्य
4.होशपूर्वक जीना।
उक्त चारों पर ध्यान दें तो तो आप ध्यान करना सीख जाएंगे।

श्वास का महत्व :
ध्यान में श्वास की गति को आवश्यक तत्व के रूप में मान्यता दी गई है। इसी से हम भीतरी और बाहरी दुनिया से जुड़े हैं। श्वास की गति तीन तरीके से बदलती है-
1.मनोभाव
2.वातावरण
3.शारीरिक हलचल।
इसमें मन और मस्तिष्क के द्वारा श्वास की गति ज्यादा संचालित होती है। जैसे क्रोध और खुशी में इसकी गति में भारी अंतर रहता है।श्वास को नियंत्रित करने से सभी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसीलिए श्वास क्रिया द्वारा ध्यान को केन्द्रित और सक्रिय करने में मदद मिलती है।
श्वास की गति से ही हमारी आयु घटती और बढ़ती है। ध्यान करते समय जब मन अस्थिर होकर भटक रहा हो उस समय श्वसन क्रिया पर ध्यान केन्द्रित करने से धीरे-धीरे मन और मस्तिष्क स्थिर हो जाता है और ध्यान लगने लगता है। ध्यान करते समय गहरी श्वास लेकर धीरे-धीरे से श्वास छोड़ने की क्रिया से जहां शरीरिक , मानसिक लाभ मिलता है,
मानसिक हलचल :
ध्यान करने या ध्यान में होने के लिए मन और मस्तिष्क की गति को समझना जरूरी है। गति से तात्पर्य यह कि क्यों हम खयालों में खो जाते हैं, क्यों विचारों को ही सोचते रहते हैं या कि विचार करते रहते हैं या कि धुन, कल्पना आदि में खो जाते हैं। इस सबको रोकने के लिए ही कुछ उपाय हैं- पहला आंखें बंदकर पुतलियों को स्थिर करें। दूसरा जीभ को जरा भी ना हिलाएं उसे पूर्णत: स्थिर रखें। तीसरा जब भी किसी भी प्रकार का विचार आए तो तुरंत ही सोचना बंद कर सजग हो जाएं। इसी जबरदस्ती न करें बल्कि सहज योग अपनाएं।
निराकार ध्यान-
ध्यान करते समय देखने को ही लक्ष्य बनाएं। दूसरे नंबर पर सुनने को रखें। ध्यान दें, गौर करें कि बाहर जो ढेर सारी आवाजें हैं उनमें एक आवाज ऐसी है जो सतत जारी रहती है आवाज, फेन की आवाज जैसी आवाज या जैसे कोई कर रहा है ॐ का उच्चारण। अर्थात सन्नाटे की आवाज। इसी तरह शरीर के भीतर भी आवाज जारी है। ध्यान दें। सुनने और बंद आंखों के सामने छाए अंधेरे को देखने का प्रयास करें। इसे कहते हैं निराकार ध्यान।
आकार ध्यान-
आकार ध्यान में प्रकृति और हरे-भरे वृक्षों की कल्पना की जाती है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि किसी पहाड़ की चोटी पर बैठे हैं और मस्त हवा चल रही है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि आपका ईष्टदेव आपके सामने खड़ा हैं। 'कल्पना ध्यान' को इसलिए करते हैं ताकि शुरुआत में हम मन को इधर उधर भटकाने से रोक पाएं।
होशपूर्वक जीना:
क्या सच में ही आप ध्यान में जी रहे हैं? ध्यान में जीना सबसे मुश्किल कार्य है। व्यक्ति कुछ क्षण के लिए ही होश में रहता है और फिर पुन: यंत्रवत जीने लगता है। इस यंत्रवत जीवन को जीना छोड़ देना ही ध्यान है।जैसे की आप गाड़ी चला रहे हैं, लेकिन क्या आपको इसका पूरा पूरा ध्यान है कि 'आप' गाड़ी चला रहे हैं। आपका हाथ कहां हैं, पैर कहां है और आप देख कहां रहे हैं। फिर जो देख रहे हैं पूर्णत: होशपूर्वक है कि आप देख रहे हैं वह भी इस धरती पर। कभी आपने गूगल अर्थ का इस्तेमाल किया होगा। उसे आप झूम इन और झूम ऑउट करके देखें। बस उसी तरह अपनी स्थिति जानें। कोई है जो बहुत ऊपर से आपको देख रहा है। शायद आप ही हों।
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ध्यान योग की सरलतम विधियां | Easiest methods of yoga
ध्यान करने की अनेकों विधियों में एक विधि यह है कि ध्यान किसी भी विधि से किया नहीं जाता, हो जाता है। ध्यान की हजारों विधियां बताई गई है। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा साधु संगतों में अनेक विधि और क्रियाओं का प्रचलन है। विधि और क्रियाएं आपकी शारीरिक और मानसिक तंद्रा को तोड़ने के लिए है जिससे की आप ध्यानपूर्ण हो जाएं।

ध्यान की हजारों विधियां हैं। शंकर ने माँ पार्वती को 112 विधियां बताई थी जो 'विज्ञान भैरव तंत्र' में संग्रहित हैं। इसके अलावा Vedas, Puran और Upnishad में ढेरों विधियां है। संत, महात्मा विधियां बताते रहते हैं। किसी भी सुखासन में आंखें बंदकर शांत व स्थिर होकर बैठ जाएं। फिर बारी-बारी से अपने शरीर के पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक अवलोकन करें। इस दौरान महसूस करते जाएं कि आप जिस-जिस अंग का अलोकन कर रहे हैं वह अंग स्वस्थ व सुंदर होता जा रहा है। यह है सेहत का रहस्य। शरीर और मन को तैयार करें ध्यान के लिए।
1 ध्यान दिन में एक या दो बार करें। कमर सीधी रखकर एक कुर्सी पर बैठें। अगर जमीन पर बैठना सुविधाजनक है तो चौकडी मार कर बैठें। सिर ऊंचा रखें, और ध्यान सिर के उपर या मस्तिश्क में आगे की ओर रखें।
2 सिद्धासन में आंखे बंद करके बैठ जाएं। फिर अपने शरीर और मन पर से तनाव हटा दें अर्थात उसे ढीला छोड़ दें। बिल्कुल शांत भाव को महसूस करें। महसूस करें कि आपका संपूर्ण शरीर और मन पूरी तरह शांत हो रहा है। नाखून से सिर तक सभी अंग शिथिल हो गए हैं। इस अवस्था में 10 मिनट तक रहें। यह काफी है साक्षी भाव को जानने के लिए।
3 आराम महसूस करने के लिये एक या दो बार शवास अन्दर लें और बाहर निकालें। कुछ समय के लिये स्थिर रहें जब तक आपको केन्द्रित लगे। अपने प्राकृतिक साँस लेने की ताल से अवगत रहें।
4 जब साँस अन्दर लेना स्वाभाविक लगे, तो मन में एक अपने चुने हुए शब्द जैसे कि "भगवान," "शांति," "आनन्द," या कोई और सुखद शब्द को बोलें। जब साँस छोड़ें तो फिर मन में उसी शब्द को बोलें। यह अनुभव करें कि आपका चुना हुआ शब्द आपके मन में बड रहा है और आपका जागरूकता का क्षेत्र भी बड रहा है। इसे बिना प्रयास के और बिना परिणाम की चिंता से करें।
5 जब मन शान्त हो जाए, तब आप शब्द को सुनना बंद कर दें। मन स्थिर रखें और ध्यान अभ्यास की शान्ति कई मिनट के लिए अनुभव करें, और जब ठीक समझें तो ध्यान समाप्त कर दें।
उपरोक्त ध्यान विधियों के दौरान वातावरण को सुगंध और संगीत से तरोताजा और आध्यात्मिक बनाएं।
श्री कृष्ण अर्जुन संवाद :****** श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा: शुद्ध एवं एकांत स्थान पर कुशा आदि का आसन बिछाकर सुखासन में बैठें. अपने मन को एकाग्र करें. मन व इन्द्रियों की क्रियाओं को अपने वश में करें, जिससे अंतःकरण शुद्ध हो. इसके लिए, सर व गर्दन को सीधा रखें और हिलाएं-दुलायें नहीं. आँखें बंद रखें व साथ ही जीभ को भी न हिलाएं. अब अपनी आँख की पुतलियों को भी इधर-उधर नहीं हिलने दें और उन्हें एकदम सामने देखता हुआ रखें. एकमात्र ईश्वर का स्मरण करते रहें. ऐसा करने से कुछ ही देर में मन शांत हो जाता है और ध्यान आज्ञा चक्र पर स्थित हो जाता है और परम ज्योति स्वरुप परमात्मा के दर्शन होते हैं.
विशेष :**** ध्यान दें जब तक मन में विचार चलते हैं तभी तक आँख की पुतलियाँ इधर-उधर चलती रहती हैं. और जब तक आँख की पुतलियाँ इधर-उधर चलती हैं तब तक हमारे मन में विचार उत्पन्न होते रहते हैं. जैसे ही हम मन में चल रहे समस्त विचारों को रोक लेते हैं तो आँख की पुतलियाँ रुक जाती हैं. इसी प्रकार यदि आँख की पुतलियों को रोक लें तो मन के विचार पूरी तरह रुक जाते हैं. और मन व आँख की पुतलियों के रुकते ही आत्मा का प्रभाव ज्योति के रूप में दीख पड़ता है.


11 May 2016

ख़्वाब अगर है तो ज़िंदा रहे

ख़्वाब अगर है तो ज़िंदा रहे 

 "एक ख्वाब का पन्ना दिल में था जो दिल में था वो कोरा था जो कोरा मैं भरने को निकला समझ समझ के जो मैं समझा वो ख्वाब जीवन का एक मोहरा था " वक्त बीतता जा रहा है लम्हों का बेशब्री से इन्तजार करने की आदतों का लम्हा खुद शिकार करने लगा है । कल की तरह आज भी सूरज की वो दहकती रश्मियाँ उतनी ही ब्याकुलता से मेरे ऊपर गिरी जैसे की आषाढ़ में वो हर किसी के ऊपर कहर बनके गिरती है। खैर जो भी हो इन तपते धूप में बैठा मैं एक ख्वाब में डूबा था कि क्या समय ने मेरे हौसले का शिकार कर लिया है ? क्या मेरी परछाई एक ज़िंदा लाश की है ? इन्ही सवालों में उलझते हुए मैं अपने ख्वाब की दुनिया में प्रवेश कर गया । अब सिर्फ मैं हक़ीक़त में मात्र एक परछाई था क्योंकि सही सन्दर्भ में मै अपने ख़्वाबों की दुनिया का एक बेहतरीन किरदार बन चुका था । मेरे ख़्वाब मजबूत होते जा रहे थे और रंगमंज पे मेरे अभिनय से तालियां की गड़गड़ाहट मेरे अभौतिक शरीर को आत्मिक ख़ुशी दे रही थी । मैं अपने चारों तरफ के वास्तविक परिवेश से काफ़ी दूर जा चुका था क्योंकि भाष्कर की पुकार का अब हमपे कोई असर नहीं था । सुबह इस काया पे गिरते रश्मियों ने जो चिलचिलाहट का निशान छोड़ा था वो अब गायब हो चुका था , हमारा काल्पनिक पर सशक्त दुनिया इतना ताक़तवर हो चुका था कि हमे पता ही नहीं चला कब प्रातःकालीन सूरज अपने सायंकालीन गृह में प्रवेश कर गया । चारों तरफ सन्नाटा पसरता जा रहा था और खामोशियाँ बार बार हमपे प्रहार करने लगी थी लेकिन मुझमे इतनी दरियादिली नहीं बची थी कि मैं अपने ख़याली दुनिया के अपने अभिनय को बीच में ही खंडित कर घर को लौट चलु ,सही कहु तो ये सम्भव भी नहीं था क्योंकि मैं इतना अंदर घुस चुका था कि एक झटके में बाहर आना दुष्कर था । मैंने सोचा क्यों न पूरा अभिनय करके ही बाहर आया जाय और इसी कश्मकश्म में मैं खुद को बेहतर साबित करने के लिए उसमे डूबता गया । मुझे स्पष्ट तो याद नहीं पर एक धुंधली से छवि मेरे सामने जरूर है । मैं एक अनजान राश्ते का मुसाफ़िर था जहाँ ख़ामोशी के सिवाय कोई मेरे साथ नहीं था । एक दूर खंड से बुझती हुई लौ में मैं बड़ी मुश्किल से खुद के पाओं को आपस में टकराने से रोक पा रहा था । मेरे पैरों को उस समय कुछ पीछे खिंच रहा था और वो बड़ा होता जा रहा था वो मेरे अंदर के भय को बढ़ाता जा रहा था ।जैसे जैसे एक एक कदम मैं आगे बढ़ रहा था मेरे आँखों के सामने अन्धेरा होता जा रहा था फिर भी मेरे सामने बढ़ने के सिवाय कोई विकल्प न था । मुझे बस जल्द से जल्द रौशनी के परिधी में शामिल होना था और मिटते हुए राश्ते को जल्द से जल्द खत्म करना था लेकिन अभी मै इनसब से बहुत दूर था ।उस वक्त मेरे हाथ में एक डण्डा था और जब जल्दबाजी के चक्कर में मैं गिरता था तो वो छड़ी भी गिर जाती थी और जब मैं उठता था तो उसे भी उठा लेता था मुझे समझना मुश्किल था कि आखिर ये मात्र डंडा था या फिर कोई उम्मीद या फिर कोई हौसला फिर भी न जाने मै क्यों उस डंडे को ढो रहा था । बात यही पे खत्म नहीं होती है अँधेरा अपनी हद पार कर रहा था वो मेरे चेहरों को दूर के लौ से दूर करने को आतुर था यहाँ भी हक़ीक़त में समझना मुश्किल था कि वो मात्र रौशनी का पुंज था या मेरा पूरा भविष्य जो भी हो अपनी ख़याली दुनिया में मैं बेशक वहां पहुचने को आतुर था ।एक बात तो मुझे साफ़ समझ आ रही थी कि जैसे जैसे मेरी लौ से निकटता बढ़ती जा रही थी मेरा दुश्मन जो मेरे पाँव को खिंच रहा था वो बढ़ा हो रहा था इसके बावजूद मैं आगे बढ़ रहा था यानि मेरी ताक़त बढ़ती जा रही थी शायद दृणइच्छा शक्ति के कारण ऐसा हो रहा था और ये चलने का सिलसिला आज भी यूँ ही ज़िंदा है । आज भी जब मैं एकांत में बैठता हु तो जैसे ही पलके गिरती है तत्क्षण वही अँधेरी गली वही सुनसान रास्ता वही अज्ञात भ्रमित भय और मेरे वही आगे बढ़ते रहने का जुनून दिखता है। ये मेरे ख्वाब भले आपको कपोल कल्पित लगे लेकिन एक सच तो जरूर है आपके मन मष्तिष्क में भी यही ख़यालात आता होगा। एक बात तो तय है कि हम मानव है हम गिरते है उठते है हम रोते है हँसते है हम अकड़ते है सिकुड़ते है इसलिए तो हम आगे बढ़ने के लिए लड़ते है । हमारी प्रकृति चोरी वोरी नहीं बल्कि जो अपने हक़ में है उसे लड़ के लेने की है । हमारे सामने तमाम अभाव होते है तमाम चुनौतियां होती है लेकिन हम उसे सहर्ष स्वीकार करते है क्योंकि हम मानव है हम जानते है कि कुछ बड़ा करने के लिय कुर्बानियाँ देनी होती है । हम अपने अभाव को अपना हथियार बनाते है और इसी से वो इतिहास लिख जाते है जिसका पन्ना किताबों में नहीं लोगों के दिलों में होता है ।वही कोरा पन्ना जिसे भरने के लिए हर कोई ब्याकुल व् आतुर रहता है । कोरा पन्ना हर किसी के सीने में है बस कुछ लोग अपने तूफानी कर्मों से सिर्फ खुद के ही नहीं वरन् अन्यों के पन्नों पे भी खुद का खिलता इतिहास लिख जाते है और कुछ लोग उपर्युक्त ख़्वाब का अँधेरी दास्तां खुद के पन्नों पे ही लिख के सिमट जाते है । अब निर्णय आपका कि क्या ख्वाब से हक़ीक़त का श्रृंगार करना है या ख़्वाब में लिपटकर सर पटक देना है ।मैं तो बस यही सोचता हु जो आपको समर्पित कर रहा हु ख्वाबों के सिलसिले से एक शहर बसानी है जहाँ होते है पुरे अरमां वो महल बनानी है कल का एक सच कि कल तो मिट जाएगा जो रहे वर्षों तक ज़िंदा ,कोरे पन्नों पे वो लहू लगानी है ।

04 May 2016

koi lauta de wo pyare pyare din.....

isko kahte hai masti k sath zindagi jina.....

koi lauta de wo pyare pyare din.....

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