नमः शिवाय!
बाबा जी कहते हैं: "जीवन में खुश होना सीखो| भगवान का दिया हुआ कितना कुछ है, फिर भी हम यही रोना रोते रहते है की तूने तो मुझे दिया ही क्या है? दूसरों के पास तो इतना कुछ है| अरे पगले! जो दूसरे भोग रहे हैं वो उनके कर्मों का फल है| यदि तू चाहता है की तेरा भी भाग्य चमके, तो साधना कर| निष्काम सेवा कर| अपने संचित कर्मों को, जो की बाधा बने हुए हैं उनको काट तो सही| आज जो भी तू अनुभव कर रहा है, वह वो वृक्ष है जिसके बीज तूने भूत काल में बोए थे| यदि भविष्य को बदलना है, तो वर्तमान में पुण्य कार्य करने ही होंगे| और पुण्य कार्य भी एक उमंग, एक खुशी के साथ करने होंगे| यह नहीं की दुखी होते हुए गुस्से से तुम दान कर रहे हो| और फिर उसका अहंकार करते हुए सारे शहर में द्धिंढोरा पीट रहे हो की हम तो बड़े दानी हैं| इसका कोई फ़ायदा नहीं हैं| दान वाह-वाही बटोरने हेतु नहीं किया जाता| वो तो तुम्हारी साधना को उपर उठाने का एक माध्यम है| इसको अपना सौभाग्य समझना की तुम गाउ सेवा कर पाओ, ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगा पाओ, ग़रीबों को अन्न दान कर पाओ, छोटे बच्चों को खुश कर पाओ| बाकी अपने भीतर एक सेवा भाव पैदा करो, साधना से सेवा करने के मार्ग अपने आप ही खुलते जाएँगे| और charity begins at home.पहले स्वयं की वास्तव में सेवा करो| खुद के प्रति सेवा का तात्पर्य junk food खाना, tv देखना,गपशप लगाना, चाय पीना नहीं है| यह तो सिर्फ़ तुम्हारी पाँच इंद्रियों की सुख प्राप्ति के अस्थाई मध्यम हैं| अमृत भोजन खाओ| साधना करो| अपने पाँचों शरीरों की सेवा करो| प्राण क्रियाएं करो| स्वाध्याय करो| बाहर की सेवा तो ठीक है पर बाहर तो सेवा तभी दे पाओँगे जब भीतर से तुम स्वयं समर्थ हो|
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