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कल जब मैं मर जाऊँगा (#Aalokry)

कल जब मैं मर जाऊँगा। तब तुम मेरे लिए आंसू बहाआगे  पर मुझे पता नही चलेगा तो  उसके बजाय  आज तुम मेरी इम्पॉर्टन्टस को महसूस क...

23 March 2014

किसी के बारे में एक बार भी बुरा चाहना, आपके हजारों पुण्यों को श्रनभर में समाप्त कर देता है जो पतनका कारण बनता है

आप एक किरायेदार हो। आपका शरीर किराये का मकान है, इस मकान का असली मालिक काल है। एकदिन इस मकान का मालिक बिना सूचना के आएगा और आपको इससे बाहर निकाल देगा, और आप खड़ेखड़े देखते रह जाओगे। तो क्यों ना इससे पहले ही इस मकान में रहकर निष्काम सेवा और साधना करकेसांसारिक एवं आध्यात्मिक सफलता प्राप्त करली जाय। इसके साथ साथ शिव शिवा का श्रवण, संकीर्तनऔर मनन करलो तो इस आवागमन से मुक्ति मिल जाए।
नम: शिवाय
किसी के बारे में एक बार भी बुरा चाहना, आपके हजारों पुण्यों को श्रनभर में समाप्त कर देता है जो पतनका कारण बनता है।
और सभी के बारे में अच्छा, शुभ चाहने मात्र से भी पुण्य जागृत होते है जिनसे भाग्योदय होता है। जोभौतिक एवं आध्यात्मिक सुख देता है।
नम: शिवाय
अपने परिवार में किसी को दुखी नहीं करना,
अपने परिवार में किसी की आलोचना नहीं करना,
अपने परिवार में किसी को कष्ट नहीं देना।
आपका परिवार एक आत्म समूह है, इस शरीर को धारण करने से पहले आत्मा विचार करती है कि पिछलेजन्मों में जो बिना सुलझे मसले रह गए हैं वह इस जन्म में आपके साथ रहकर सुलझाने हैं।
इसीलिए परिवार के सभी सदस्यों को प्रेम देना, और उनको स्वीकार करना, ऐसा करने से बहुत तेजी सेआध्यात्मिक उन्नति होती है ।
नम: शिवाय
मैं जिसके बारे में सोचूंगा या जिसका नाम लूंगा, तुरंत मेरा मन उससे जुड जायेगा, और हम दोनों की ऊर्जाके बीच में एक पुल बन जायेगा, फिर उसकी ऊर्जा मेरी तरफ आयेगी और मेरी ऊर्जा उसकी तरफ जायेगी।कुछ समय के बाद हम दोनों की ऊर्जा बराबर हो जायेगी।
इसीलिए हमेशा दिव्य पुरुष (गुरु) के बारे में ही सोचना तो एक दिन आप और वह दिव्य पुरुष एक (अद्वैत)हो जाओगे।
क्या आप ने कभी अपने आपको देखा कि आप किस (अच्छा या बुरा) के बारे में सोचते हैं।

नम: शिवाय
• जो खुद खुश नहीं है वो औरों को खुशी नहीं दे सकता है।नम: शिवाय

• इस दुनिया में कोई भी चीज़ जिससे मनुष्य को लगाव है उसे वह छोड़ नहीं सकता है। यदि छुड़वाया जाए तो कष्ट होगा।
यह चीज़ स्वतः ही छूट जाती है यदि उससे अच्छी कोई चीज़ उसके जीवन में मिल जाए।
जब घर में गैस आई तो स्टोव छूट गया, रंगीन टेलीविजन आई तो ब्लैक एंड व्हाइट टेलीविजन छूट गया, कार आई तो स्कूटर छूट गया। छोड़ना नहीं पड़ा, स्वतः ही छूट गया।
इस संसार में परमात्मा का सुख सबसे बड़ा सुख है और जिसको उस सुख से लगाव हो जाए तो दुनिया की सभी चीजों से खुशी खुशी अलगाव शुरू हो जाता है।
नम: शिवाय

• बीज जब तक अपना अस्तित्व रखता है तब तक पौधा नहीं बन सकता। और पौधा अगर अपना अस्तित्व बनाए रखे तो विशाल वृक्ष नहीं बन सकता, इसीलिए जितना खोओगे, जितना मिटोगे उतना ही पाओगे।
गुरु भक्ति एक समर्पण का मार्ग है, मिटने का मार्ग है, खो जाने का मार्ग है, व्यक्ति जितना सूक्ष्म होता है उतना ही महान होता है। फिर किसी की गाली उसे प्रभावित नहीं कर सकती, किसी की प्रशंसा भी उसे प्रभावित नहीं कर सकती, क्योंकि वह मिट चुका है।
मरकर तो सभी मिटते हैं, सभी खोते हैं , जो जीते जी खो चुका और अपनी मैं का अस्तित्व मिटा देता है तभी वह इंसान शिव बनता है और वही धन्य है।
नम: शिवाय


• ये संसार जिसे विपत्ति, रुकावट, दुख एवं रोग कहता है, वास्तव में वह इंसान के संचित कर्मों द्वारा उत्पन्न प्रारब्ध भोग हैं और कुछ नहीं।
जिसे सत्कर्म कर्म, निष्काम सेवा एवं साधना करके सुख में बदला जा सकता है।
नम: शिवाय


• तुम अपने लिए जो कुछ भी चाहते हो, सिर्फ वही बोलना और वही सोचना, क्योंकि आपकी सोच साकार रूप लेती है।
नम: शिवाय


• जिस दिन आप पूरी श्रद्धा एवं समर्पण भाव से ईश्वरीय अनुकम्पा प्राप्त करने के जिज्ञासु हो तो यह समझलेना यह विचार ही हजारों पुण्य कर्मों का फल है, और इस बात का विश्वास रखना कि ठीक उसी क्षण से ईश्वरीय शक्ति ( सिद्ध गुरू) आपके जीवन में आते हैं और आपको आप से जोड़ने के लिए आपका मार्गदर्शन करना शुरू कर देते हैं।
नम: शिवाय


• उस परात्पर शिव के नाम का अगर एक बार भी सुमिरन किया है तो उसका पुण्य आपको मिलता है, और अगर उसका नाम अपनी हर साँस के साथ जोड़ दिया तो इस दुनिया में आपसे बड़ा धनवान और कौन हो सकता है।
तुम्हारी असली कमाई वो है जो मीठे शब्द आपने बोले जिससे किसी के अन्दर में शीतलता उतर गई हो, और उसके साथ साथ उस परमात्मा के नाम का सुमिरन। यही कमाई तुम्हारे खाते में हर क्षण लिखी जा रही है, जो इस जीवन में तो रहती ही है और साथ भी जाती है। नम: शिवाय (शिव योग)


• खून की खराबी है और इंसान फोडे-फुंसियों पर मरहम लगाता रहता है, तो क्या वह बीमारी ठीक हो सकती है?
वैसे ही हर कष्ट का मूल कारण संचित कर्म है जो इंसान को प्रारब्ध भोग के रूप में इस जीवन में भोगना पढ़ता है। और इंसान इधर-उधर भागा फिरता है समाधान के लिए।
जीवन में सुख पाने के लिए बुरे संचित कर्मों को निष्क्रिय करना होगा, उसके लिए अपनी भावना को शुद्ध रखना, शुभ कर्म करना एवं इसके साथ- साथ समर्पण भाव से ईश्वर का सुमिरन और साधना करनी चाहिए। नम: शिवाय (शिव योग


• पहले अहंकार को पकड़ कर दिखाईये , फिर पूछिए उसका नाश कैसे किया जाए | यह प्रश्न कौन पूछ रहा है ? अहंकार | क्या अहंकार कभी भी स्वयं अपने मृत्यु की सम्मति दे सकता है ? ऐसे प्रश्न पूछते रहना अहंकार को सुरक्षित रखने का मार्ग है , उसे नष्ट करने का नहीं |यदि आप अहंकार की प्रामाणिक तलाश करेंगे तो ज्ञात होगा उसका अस्तित्व ही नहीं है | यही उसके विनाश का मार्ग है


• कोई किसी की भी बुराई मेरे सामने करता है, और अगर मैं उसे बहुत रूचि से सुनता हूँ तो मैं एक कचरे का डब्बा हूँ जहाँ पर गन्दगी डाली जाती है।
नम: शिवाय


• नीयत(intention) कितनी भी अच्छी हो, ये दुनिया आपको आपके दिखावे से जानती है।
और दिखावा कितना भी अच्छा हो, खुदा आपको आपकी नीयत से जानता है।।


• तुम्हारे और शिव के बीच का रास्ता बिल्कुल साफ और सुन्दर है, और दिव्य पुरुष (गुरु) उस रास्ते में खड़े हैं आपका हाथ पकडकर उस तक ले जाने के लिए, मार्ग दर्शन करने के लिए। लेकिन आपके कर्मों की परतों ने उस रास्ते के ऊपर अग्यानता का पर्दा डाल दिया है। यह पर्दा माया, लोभ, लालच, काम, क्रोध, मोह से बुना गया है। इस पर्दा को थोड़ा हटा कर तो देखो वो मुस्कुराते हुए बाहें फैलाकर खड़ा है सिर्फ आपके लिए।

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