- जब
सकारात्मक ऊर्जा
कम होती
है और
नकारात्मक ऊर्जा
बढ़ जाती
है तो
बात बिगडना
शुरू हो
जाती है,
और जब
बात बिगड़ती
है तो
मनुष्य और
ज्यादा शिकायत
करता है,
रोता है,
बिलखता है
और दुखी
होता है
जिससे मुश्किल
भी और
ज्यादा बढ़
जाती है।
मेरा बाबा कहता है कि अगर कोई बात बिगड़ भी जाय तो रोना नहीं, दुखी नहीं होना बल्कि तुरंत उस शिवा को सुमिरना शुरू कर देना जिससे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाएगी और देखना बात बननी शुरू हो जाएगी।
नम: शिवाय - अगर
किसी के
संचित कर्म
पवित्र और
शुद्ध है
तो उसकी
दृष्टि भी
उतनी ही
पवित्र होगी,
उसके आसपास
का वातावरण
भी आनन्द
से भरा
होगा।
और जिस मनुष्य के संचित कर्म भारी होंगे तो उसको हर चीज़ बुरी दिखाई देगी, और उसके जीवन में अचानक कष्ट आते रहते है जो जीवन को असहाय बना देते हैं।।
आपकी सोच और विचारों के वार्तालाप को प्रकृति एक भौतिक रूप देती है। परन्तु आपके संचित कर्म आपकी बुद्धि को पकडते हैं जिसके अनुरूप आप सकारात्मक एवं नकारात्मक सोचते हैं।
सिर्फ साधना एवं निस्वार्थ सेवा पिछले बुरे कर्मों को निष्क्रिय करती है और शुभ कर्म पैदा कर सकती है।
नम: शिवाय - जब
प्राण शक्ति
कमजोर होती
है तो
मन अशान्त,
चिडचिडा, और
क्रोधी हो
जाता है।
और मनुष्य
निस्तेज हो
जाता है।
और जब प्राण शक्ति का प्रवाह उत्तम हो जाता है तब मनुष्य एकदम आनंदित और तेजोमय हो जाता है।
प्राण शक्ति के उत्तम प्रवाह के लिये शिव साधना सव्रोत्तम है।
नम: शिवाय - आप
एक किरायेदार
हो। आपका
शरीर किराये
का मकान
है, इस
मकान का
असली मालिक
काल है।
एक दिन
इस मकान
का मालिक
बिना सूचना
के आएगा
और आपको
इससे बाहर
निकाल देगा,
और आप
खड़े खड़े
देखते रह
जाओगे। तो
क्यों ना
इससे पहले
ही इस
मकान में
रहकर निष्काम
सेवा और
साधना करके
सांसारिक एवं
आध्यात्मिक सफलता
प्राप्त करली
जाय। इसके
साथ साथ
शिव शिवा
का श्रवण,
संकीर्तन और
मनन करलो
तो इस
आवागमन से
मुक्ति मिल
जाए।
नम: शिवाय - किसी
के बारे
में एक
बार भी
बुरा चाहना,
आपके हजारों
पुण्यों को
श्रनभर में
समाप्त कर
देता है
जो पतन
का कारण
बनता है।
और सभी के बारे में अच्छा, शुभ चाहने मात्र से भी पुण्य जागृत होते है जिनसे भाग्योदय होता है। जो भौतिक एवं आध्यात्मिक सुख देता है।
नम: शिवाय - अपने
परिवार में
किसी को
दुखी नहीं
करना,
अपने परिवार में किसी की आलोचना नहीं करना,
अपने परिवार में किसी को कष्ट नहीं देना।
आपका परिवार एक आत्म समूह है, इस शरीर को धारण करने से पहले आत्मा विचार करती है कि पिछले जन्मों में जो बिना सुलझे मसले रह गए हैं वह इस जन्म में आपके साथ रहकर सुलझाने हैं।
इसीलिए परिवार के सभी सदस्यों को प्रेम देना, और उनको स्वीकार करना, ऐसा करने से बहुत तेजी से आध्यात्मिक उन्नति होती है ।
नम: शिवाय - मैं
जिसके बारे
में सोचूंगा
या जिसका
नाम लूंगा,
तुरंत मेरा
मन उससे
जुड जायेगा,
और हम
दोनों की
ऊर्जा के
बीच में
एक पुल
बन जायेगा,
फिर उसकी
ऊर्जा मेरी
तरफ आयेगी
और मेरी
ऊर्जा उसकी
तरफ जायेगी।
कुछ समय
के बाद
हम दोनों
की ऊर्जा
बराबर हो
जायेगी।
इसीलिए हमेशा दिव्य पुरुष (गुरु) के बारे में ही सोचना तो एक दिन आप और वह दिव्य पुरुष एक (अद्वैत) हो जाओगे।
क्या आप ने कभी अपने आपको देखा कि आप किस (अच्छा या बुरा) के बारे में सोचते हैं।
नम: शिवाय
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जब सकारात्मक ऊर्जा कम होती है और नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है
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