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कल जब मैं मर जाऊँगा (#Aalokry)
कल जब मैं मर जाऊँगा। तब तुम मेरे लिए आंसू बहाआगे पर मुझे पता नही चलेगा तो उसके बजाय आज तुम मेरी इम्पॉर्टन्टस को महसूस क...
31 January 2013
30 January 2013
Guru Stotra
- Guru Brahma Gurur Vishnu
Guru Devo Maheshwaraha
Guru Saakshat Para Brahma
Tasmai Sree Gurave NamahaMeaning:Guru is verily the representative of Brahma, Vishnu and Shiva. He creates, sustains knowledge and destroys the weeds of ignorance. I salute such a Guru. - Akhanda Mandalaakaaram
Vyaaptam Yenam charaacharam
Tatpadam Darshitam Yena
Tasmai Sri Gurave Namaha.Meaning: Guru can guide us to the supreme knowledge of THAT which pervades all the living and non-living beings in the entire Universe (namely Brahman). I salute such a Guru. - Agnyaana Timiraandhasya
Gnyaana Anjana Shalaakayaa
Chakshuhu Unmeelitam Yenam
Tasmai Sri Gurave Namaha.Meaning: A Guru can save us from the pangs of ignorance (darkness) by applying to us the balm of knowledge or awareness of the Supreme, I salute such a Guru. - Sthaavaram Jangamam Vyaaptam
Yatkinchit Sacharaa Charam
TatPadam Darshitam Yena
Tasmai Sri Gurave Namaha.Meaning: That Guru who can enlighten us about the all pervading consciousness present in all the three world or states (of Jaagrath, Swapna and Sushupti ... activity, dream and deep sleep state), I salute such a Guru. - Chinmayam Vyaapi Yatsarvam
Trailokya Sacharaa Charam
TatPadam Darshitam Yena
Tasmai Sri Gurave Namaha.Meaning: That revered Master who directs my attention to the ONE divinity existing in all that is inert (immobile) as well as that which is active (mobile), I salute such a Guru. - Sarva Sruti Shiroratna
Viraajita Padambujaha
Vedaantaambuja Sooryo Yah
Tasmai Sri Gurave Namaha.Meaning: That Guru who is the ocean of the Srutis (Vedas), the Sun of knowledge (who can destroy our ignorance with these rays), I salute such a Guru. - Chaitanyah Shaashwatah Shaantho
Vyomaateeto Niranjanaha
Bindu Naada Kalaateetaha
Tasmai Sri Gurave Namaha.Meaning: That Guru who is the representative of the unchangeable, ever present, peaceful spirit, who is one pointed and beyond the realm of space and time, whose vision is always enchanting, I salute such a Guru. - Gnyaana Shakti Samaaroodah
Tatwa Maalaa Vibhooshitaha
Bhukti Mukti Pradaaneyna
Tasmai sri Gurave Namaha.Meaning: The one who is an ocean of knowledge, who is always in Yoga (in unison With God) who is adorned by the knowledge of the God principle, the One Who can liberate us from this mundane existence, I salute such a Guru. - Aneka Janma Sampraapta
Karma Bandha Vidaahine
Atma Gnyaana Pradaaneyna
Tasmai Sri Gurave Namaha.Meaning: The one who can help us free from the chain of karma accumulated over several lives, by teaching us the knowledge of the self (Atma Gnyaana), I salute such a Guru. - Shoshanam Bhava Sindhoscha
Gnyaapanam Saarasampadaha
Guror Padodakam Samyak
Tasmai Sri Gurave Namaha.Meaning: The one who can help us cross this ocean of life, the one who can reveal to us the Divine, I adore his Paadukaas (hold on to his feet), I salute such a Guru. - Na Guror Adhikam Tatwam
Na Guror Adhikam Tapaha
Tatwa Gnyaanaat Param Naasti
Tasmai Sri Gurave Namaha.Meaning: There no greater principle than the Guru; there is no greater penance than the Guru; There is no greater knowledge than meditation on such a Guru. I salute such a Guru. - Mannaathah Sri Jaganaatho
Madguruhu Sri Jagad Guruhu
Madh Atma Sarva Bhootaatma
Tasmai Sri Gurave Namaha.Meaning: The Lord of the world is my Lord and the Guru of the World is my Guru, the SELF in me is the same which is present in all (the same divinity inherent in all beings). I salute such a Guru (who gives me this insight). - Guroraadi Anaadischa
Guruh Parama Daivatam
Guroh Parataram Naasti
Tasmai Sri Gurave Namaha.Meaning: The Guru has neither beginning nor end; the Guru is the ultimate God (in the visible form). There is nothing beyond this Guru principle, and I salute such a Guru.
Dhyaanamoolam Gurur Moorthihi
Poojamoolam Guroh Padam
Mantramoolam Guror Vaakyam
Moksha Moolam Guru Krupa.
Poojamoolam Guroh Padam
Mantramoolam Guror Vaakyam
Moksha Moolam Guru Krupa.
Meaning: The Guru's form is the best to meditate upon; the Guru's feet are the best for worship; the Guru's word is the mantra; the Guru's Grace is the root of liberation.
Brahmaanandham Parama Sukhadam
Kevalam Jnaana Murthim
Dhvandhvaa Theetham Gagana Sadhrisham
Tathvam Asyaadi Lakshyam
Ekam Nithyam Vimalam Achalam
Sarvadhee Saakshi Bhutham
Bhavaatheetham Thriguna Rahitham
Sadhgurum Tham Namaami.
Kevalam Jnaana Murthim
Dhvandhvaa Theetham Gagana Sadhrisham
Tathvam Asyaadi Lakshyam
Ekam Nithyam Vimalam Achalam
Sarvadhee Saakshi Bhutham
Bhavaatheetham Thriguna Rahitham
Sadhgurum Tham Namaami.
एक सेठ अपने बगीचे से बहुत प्रेम करते थे वसंत आते ही उनके बगीचे मे हर तरह के फूलों ने अपनी छटा बिखेर दी सुंदर सुंदर फूलों के बीच जब सेठ जंगली फूलों को देखते तो उदास हो जाते सेठ ने उन जंगली फूलों को उखाड़कर फेंक दिया लेकिन कुछ दिनों बाद वे जंगली फूल फिर उग आए सेठ ने सोचा क्यों न इन पर दवा का प्रयोग किया जाए फिर उन्हें किसी जानकार ने बताया कि इस तरह तो अच्छे फूलों के नष्ट होने का खतरा भी है तब सेठ ने निराश होकर अच्छे अनुभवी माली की सलाह ली माली ने कहा अच्छी चीजों के साथ बुरी चीजें जीवन के अनिवार्य नियमों मे शामिल है जहाँ बहुत सी बातें अच्छी होती है वहाँ कुछ अनचाही दिक्कते और तकलीफ भी पैदा हो जाती है मेरी मानो सेठजी तो तुम इन्हें नजरअंदाज करना सीखों यही खुश होने का सर्वोत्तम उपाय है इन फूलों की तुमने कोई ख्वाहिश तो नही की थी लेकिन अब वेतुम्हारे बगीचे का हिस्सा बन गये है यह जीवन ऐसा ही है इसे स्वीकार करके ही तुम खुश हो सकते हो यदि गुणों का फायदा उठाना चाहते हो तो अवगुणों को बर्दाश्त करना ही होगा.
29 January 2013
JUST THINK...........
हमारी प्रार्थना अब कुछ ऐसी हो गई है "हे ईश्वर मेरे चारों ओर फैले वातावरण को शुद्ध करिए, मेरे करीबीयों को आशीर्वाद दें, मेरे पड़ोसिओं को सद्बुद्धि दें" इत्यादि| किंतु अगर ह्म शांति से मनन करें तो ह्म पाएँगे की ह्म कितनी बड़ी भूल कर रहे हैं और प्रार्थना के सही वचन और भाव जो की हर पूजा अर्चना से पूर्व करने चाहिए उनसे हम अपने को वंचित कर रहे हैं| हालाँकि ईश्वर को याद करने के कोई निश्चित वचन नियम नहीं हैं पर भाव क्या होना चाहिए यह तो बताया जा ही सकता है| साधना और स्वाध्याय से पहले ये कामना करें की "हे प्रभु मुझे पवित्र कर दो, मुझे एक बेहतर मनुष्य बना दो, मेरी चेतना का स्तर बड़ा दो, मुझे अंतर आत्मा की पुकार सुनने में सक्षम कर दो, मेरे मन को शांत कर दो और मेरा भाव और चरित्र दोनों ही सदा के लिए शुद्ध कर दो"| क्योंकि जीवन में उपद्रव और गड़बड़ किसी दूसरे के कर्मों से नहीं बल्कि अपने अंतर-द्वंद्व और नकारात्मक सोच की कतार को पनाह देने से आती है
28 January 2013
My-Sweet-Diary-Har-haal-mein-khushiiiiii (click here)
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27 January 2013
26 January 2013
जनहित में जारी....
आजकल नए बने ताज एक्सप्रेस वे पर रोजाना गाड़ियों के टायर फटने के मामले सामने आ रहे हैं जिनमें रोजाना कई लोगों की जानें जा रही हैं.
एक दिन बैठे बैठे मन में प्रश्न उठा कि आखिर देश की सबसे आधुनिक सड़क पर ही सबसे ज्यादा हादसे क्यूँ हो रहे हैं? और हादसों का तरीका भी केवल एक ही वो भी टायर फटना ही मात्र,
दिमाग ठहरा खुराफाती सो सोचा आज इसी बात का पता किया जाये. तो टीम जुट गई इसका पता लगाने में.
अब सुनिए हमारे प्रयोग के बारे में.
मेरे पास तो इको फ्रेंडली हीरो जेट है सो इतनी हाई-फाई गाडी को तो एक्सप्रेस वे अथोरिटी इजाजत देती नहीं सो हमारे एडमिन पेनल की दूसरी कुराफाती हस्ती को मैंने बुला लिया उनके पास BMW X1 SUV है
(ध्यान रहे असली मुद्दा टायर फटना है)
सबसे पहले हमनें ठन्डे टायरों का प्रेशर चेक किया और उसको अन्तराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ठीक किया जो कि 25 PSI है. (सभी विकसित देशों की कारों में यही हवा का दबाव रखा जाता है जबकि हमारे देश में लोग इसके प्रति जागरूक ही नहीं हैं या फिर ईंधन बचाने के लिए जरुरत से ज्यादा हवा टायर में भरवा लेते हैं जो की 35 से 45 PSI आम बात है).
खैर अब आगे चलते हैं.
इसके बाद ताज एक्सप्रेस वे पर हम नोएडा की तरफ से चढ़ गए और गाडी दोडा दी. गाडी की स्पीड हमनें 150 - 180 KM /H रखी. इस रफ़्तार पर गाडी को पोने दो घंटे दोड़ाने के बाद हम आगरा के पास पहुँच गए थे. आगरा से पहले ही रूककर हमने दोबारा टायर प्रेशर चेक किया तो यह चोंकाने वाला था. अब टायर प्रेशर था 52 PSI .
अब प्रश्न उठता है की आखिर टायर प्रेशर इतना बढ़ा कैसे सो उसके लिए हमने थर्मोमीटर को टायर पर लगाया तोटायर का तापमान था 92 .5 डिग्री सेल्सियस.
सारा राज अब खुल चुका था, कि टायरों के सड़क पर घर्षण से तथा ब्रेकों की रगड़ से पैदा हुई गर्मी से टायर के अन्दर की हवा फ़ैल गई जिससे टायर के अन्दर हवा का दबाव इतना अधिक बढ़ गया. चूँकि हमारे टायरों में हवा पहले ही अंतरिष्ट्रीय मानकों के अनुरूप थी सो वो फटने से बच गए. लेकिन जिन टायरों में हवा का दबाव पहले से ही अधिक (35 -45 PSI) होता है या जिन टायरों में कट लगे होते हैं उनके फटने की संभावना अत्यधिक होती है.
अत : ताज एक्सप्रेस वे पर जाने से पहले अपने टायरों का दबाव सही कर लें और सुरक्षित सफ़र का आनंद लें. मेरी एक्सप्रेस वे अथोरिटी से भी येविनती है के वो भी वाहन चालकों को जागरूक करें ताकि यह सफ़र अंतिम सफ़र न बने.
कि इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें. चूँकि ऐसा करके आपने यदि एक जान भी बचा ली तो आपका मनुष्य जन्म धन्य होगा
JAB BHI AAP KISI KI DIL SE HELP KARTE HO TO USKA KAI GUNA BADH KAR APKO TAB MIL JATA HAI JAB APKO BHI KABHI HELP KI JARURAT HO.................
एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था, एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा. दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजा खोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उसने पानी का एक गिलास पानी माँगा. लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक...... बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया. " कितने पैसे दूं?" लड़के ने पूछा. " पैसे किस बात के?" लड़की ने जवाव में कहा." माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए." " तो फिर मैं आपको दिल से धन्यबाद देता हूँ." जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकी थी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था. सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी. लोकल डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया. विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्वे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी. वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया. उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा. उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी. डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया.
उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया. लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरा गयी, उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान ले लेगी. फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पेन से लिखे नोट पर गयी, जहाँ लिखा था," एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है." नीचे डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे. ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालों पर आंसू अपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर कहा," हे भगवान! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है."
उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया. लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरा गयी, उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान ले लेगी. फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पेन से लिखे नोट पर गयी, जहाँ लिखा था," एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है." नीचे डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे. ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालों पर आंसू अपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर कहा," हे भगवान! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है."
25 January 2013
24 January 2013
23 January 2013
महा मृत्युंजय मंत्र का अर्थ
||महा मृत्युंजय मंत्र ||
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उ
र्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
||महा मृत्युंजय मंत्र का अर्थ ||
समस्त संसार के पालनहार, तीन नेत्र वाले शिव की हम अराधना करते हैं। विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं।
महामृत्युंजय मंत्र के वर्णो (अक्षरों) का अर्थ
महामृत्युंघजय मंत्र के वर्ण पद वाक्यक चरण आधी ऋचा और सम्पुतर्ण ऋचा-इन छ: अंगों के अलग-अलग अभिप्राय हैं।
ओम त्र्यंबकम् मंत्र के 33 अक्षर हैं जो महर्षि वशिष्ठर के अनुसार 33 देवताआं के घोतक हैं। उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन तैंतीस देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं । साथ ही वह नीरोग, ऐश्वर्य युक्ता धनवान भी होता है । महामृत्युंरजय का पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है । भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस निरन्तंर बरसती रहती है।
त्रि - ध्रववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है।
यम - अध्ववरसु प्राण का घोतक है, जो मुख में स्थित है।
ब - सोम वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण कर्ण में स्थित है।
कम - जल वसु देवता का घोतक है, जो वाम कर्ण में स्थित है।
य - वायु वसु का घोतक है, जो दक्षिण बाहु में स्थित है।
जा- अग्नि वसु का घोतक है, जो बाम बाहु में स्थित है।
म - प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है।
हे - प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित है।
सु -वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है।
ग -शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
न्धिम् -गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है।
पु- अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्तह के मध्य भाग में स्थित है।
ष्टि - अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है, बाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है।
व - पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है।
र्ध - भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है, बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
नम् - कपाली रुद्र का घोतक है । उरु मूल में स्थित है।
उ- दिक्पति रुद्र का घोतक है । यक्ष जानु में स्थित है।
र्वा - स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है।
रु - भर्ग रुद्र का घोतक है, जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है।
क - धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है।
मि - अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है।
व - मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है।
ब - वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है।
न्धा - अंशु आदित्यद का घोतक है । वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है।
नात् - भगादित्यअ का बोधक है । वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है।
मृ - विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है।
र्त्यो् - दन्दाददित्य् का बोधक है । वाम पार्श्वि भाग में स्थित है।
मु - पूषादित्यं का बोधक है । पृष्ठै भगा में स्थित है ।
क्षी - पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है । नाभि स्थिल में स्थित है।
य - त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है । गुहय भाग में स्थित है।
मां - विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्व्रुप दोनों भुजाओं में स्थित है।
मृ - प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है।
तात् - अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।उपर वर्णन किये स्थानों पर उपरोक्तध देवता, वसु आदित्य आदि अपनी सम्पुर्ण शक्तियों सहित विराजत हैं । जो प्राणी श्रध्दा सहित महामृत्युजय मंत्र का पाठ करता है उसके शरीर के अंग - अंग ( जहां के जो देवता या वसु अथवा आदित्यप हैं ) उनकी रक्षा होती है ।
मंत्रगत पदों की शक्तियॉं
जिस प्रकार मंत्रा में अलग अलग वर्णो (अक्षरों ) की शक्तियाँ हैं । उसी प्रकार अलग - अल पदों की भी शक्तियॉं है।
त्र्यम्बकम् - त्रैलोक्यक शक्ति का बोध कराता है जो सिर में स्थित है।
यजा- सुगन्धात शक्ति का घोतक है जो ललाट में स्थित है ।
महे- माया शक्ति का द्योतक है जो कानों में स्थित है।
सुगन्धिम् - सुगन्धि शक्ति का द्योतक है जो नासिका (नाक) में स्थित है।
पुष्टि - पुरन्दिरी शकित का द्योतक है जो मुख में स्थित है।
वर्धनम - वंशकरी शक्ति का द्योतक है जो कंठ में स्थित है ।
उर्वा - ऊर्ध्देक शक्ति का द्योतक है जो ह्रदय में स्थित है ।
रुक - रुक्तदवती शक्ति का द्योतक है जो नाभि में स्थित है।
मिव - रुक्मावती शक्ति का बोध कराता है जो कटि भाग में स्थित है ।
बन्धानात् - बर्बरी शक्ति का द्योतक है जो गुह्य भाग में स्थित है ।
मृत्यो: - मन्त्र्वती शक्ति का द्योतक है जो उरुव्दंय में स्थित है।
मुक्षीय - मुक्तिकरी शक्तिक का द्योतक है जो जानुव्दओय में स्थित है ।
मा - माशकिक्तत सहित महाकालेश का बोधक है जो दोंनों जंघाओ में स्थित है ।
अमृतात - अमृतवती शक्तिका द्योतक है जो पैरो के तलुओं में स्थित है।
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उ
र्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
||महा मृत्युंजय मंत्र का अर्थ ||
समस्त संसार के पालनहार, तीन नेत्र वाले शिव की हम अराधना करते हैं। विश्व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं।
महामृत्युंजय मंत्र के वर्णो (अक्षरों) का अर्थ
महामृत्युंघजय मंत्र के वर्ण पद वाक्यक चरण आधी ऋचा और सम्पुतर्ण ऋचा-इन छ: अंगों के अलग-अलग अभिप्राय हैं।
ओम त्र्यंबकम् मंत्र के 33 अक्षर हैं जो महर्षि वशिष्ठर के अनुसार 33 देवताआं के घोतक हैं। उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन तैंतीस देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं । साथ ही वह नीरोग, ऐश्वर्य युक्ता धनवान भी होता है । महामृत्युंरजय का पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है । भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस निरन्तंर बरसती रहती है।
त्रि - ध्रववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है।
यम - अध्ववरसु प्राण का घोतक है, जो मुख में स्थित है।
ब - सोम वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण कर्ण में स्थित है।
कम - जल वसु देवता का घोतक है, जो वाम कर्ण में स्थित है।
य - वायु वसु का घोतक है, जो दक्षिण बाहु में स्थित है।
जा- अग्नि वसु का घोतक है, जो बाम बाहु में स्थित है।
म - प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है।
हे - प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित है।
सु -वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है।
ग -शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
न्धिम् -गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है।
पु- अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्तह के मध्य भाग में स्थित है।
ष्टि - अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है, बाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है।
व - पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है।
र्ध - भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है, बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
नम् - कपाली रुद्र का घोतक है । उरु मूल में स्थित है।
उ- दिक्पति रुद्र का घोतक है । यक्ष जानु में स्थित है।
र्वा - स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है।
रु - भर्ग रुद्र का घोतक है, जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है।
क - धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है।
मि - अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है।
व - मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है।
ब - वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है।
न्धा - अंशु आदित्यद का घोतक है । वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है।
नात् - भगादित्यअ का बोधक है । वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है।
मृ - विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है।
र्त्यो् - दन्दाददित्य् का बोधक है । वाम पार्श्वि भाग में स्थित है।
मु - पूषादित्यं का बोधक है । पृष्ठै भगा में स्थित है ।
क्षी - पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है । नाभि स्थिल में स्थित है।
य - त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है । गुहय भाग में स्थित है।
मां - विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्व्रुप दोनों भुजाओं में स्थित है।
मृ - प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है।
तात् - अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।उपर वर्णन किये स्थानों पर उपरोक्तध देवता, वसु आदित्य आदि अपनी सम्पुर्ण शक्तियों सहित विराजत हैं । जो प्राणी श्रध्दा सहित महामृत्युजय मंत्र का पाठ करता है उसके शरीर के अंग - अंग ( जहां के जो देवता या वसु अथवा आदित्यप हैं ) उनकी रक्षा होती है ।
मंत्रगत पदों की शक्तियॉं
जिस प्रकार मंत्रा में अलग अलग वर्णो (अक्षरों ) की शक्तियाँ हैं । उसी प्रकार अलग - अल पदों की भी शक्तियॉं है।
त्र्यम्बकम् - त्रैलोक्यक शक्ति का बोध कराता है जो सिर में स्थित है।
यजा- सुगन्धात शक्ति का घोतक है जो ललाट में स्थित है ।
महे- माया शक्ति का द्योतक है जो कानों में स्थित है।
सुगन्धिम् - सुगन्धि शक्ति का द्योतक है जो नासिका (नाक) में स्थित है।
पुष्टि - पुरन्दिरी शकित का द्योतक है जो मुख में स्थित है।
वर्धनम - वंशकरी शक्ति का द्योतक है जो कंठ में स्थित है ।
उर्वा - ऊर्ध्देक शक्ति का द्योतक है जो ह्रदय में स्थित है ।
रुक - रुक्तदवती शक्ति का द्योतक है जो नाभि में स्थित है।
मिव - रुक्मावती शक्ति का बोध कराता है जो कटि भाग में स्थित है ।
बन्धानात् - बर्बरी शक्ति का द्योतक है जो गुह्य भाग में स्थित है ।
मृत्यो: - मन्त्र्वती शक्ति का द्योतक है जो उरुव्दंय में स्थित है।
मुक्षीय - मुक्तिकरी शक्तिक का द्योतक है जो जानुव्दओय में स्थित है ।
मा - माशकिक्तत सहित महाकालेश का बोधक है जो दोंनों जंघाओ में स्थित है ।
अमृतात - अमृतवती शक्तिका द्योतक है जो पैरो के तलुओं में स्थित है।
22 January 2013
21 January 2013
20 January 2013
=========== बीज मन्त्रों के रहस्या-=============
शास्त्रों में अनेकों बीज मन्त्र कहे हैं, आइये बीज मन्त्रों का रहस्य जाने!
१--क्रीं--इसमें चार वर्ण हैं! [क,र,ई,अनुसार] क--काली, र--ब्रह्मा, ईकार--दुःखहरण!
अर्थ--ब्रह्म-शक्ति-संपन्न महामाया काली मेरे दुखों का हरण करे!
२--श्रीं----चार स्वर व्यंजन---[श, र, ई, अनुसार]=श--महालक्ष्मी, र-धन-ऐश्वर्य, ई-- तुष्टि, अनुस्वार-- दुःखहरण!
अर्थ---धन- ऐश्वर्य सम्पति, तुष्टि-पुष्टि की अधिष्ठात्री देवी लाष्मी मेरे दुखों का नाश कर!
३--ह्रौं---[ह्र, औ, अनुसार] ह्र-शिव, औ-सदाशिव, अनुस्वार--दुःख हरण!
अर्थ--शिव तथा सदाशिव कृपा कर मेरे दुखों का हरण करें!
४--दूँ ---[ द, ऊ, अनुस्वार]--द- दुर्गा, ऊ--रक्षा, अनुस्वार करना!
अर्थ-- माँ दुर्गे मेरी रक्षा करो! यह दुर्गा बीज है!
५--ह्रीं --यह शक्ति बीज अथवा माया बीज है!
[ह,र,ई,नाद, बिंदु,]---ह-शिव, र-प्रकृति,ई--महामाया, नाद-विश्वमाता, बिंदु-दुःख हर्ता!
अर्थ--शिवयुक्त विश्वमाता मेरे दुखों का हरण करे!
६--ऐं--[ऐ, अनुस्वार]-- ऐ- सरस्वती, अनुस्वार-दुःखहरण!
अर्थ--- हे सरस्वती मेरे दुखों का अर्थात अविद्या का नाश कर!
७--क्लीं-- इसे काम बीज कहते हैं![क, ल,ई अनुस्वार]--क--कृष्ण अथवा काम,ल--इंद्र,ई--तुष्टि भाव, अनुस्वार-सुख दाता!
कामदेव रूप श्री कृष्ण मुझे सुख-सौभाग्य दें!
८--गं--यह गणपति बीज है![ग, अनुस्वार] ग-गणेश, अनुस्वार-दुःखहरता!
अर्थ-- श्री गणेश मेरे विघ्नों को दुखों को दूर करें!
९--हूँ--[ ह, ऊ, अनुस्वार]--ह--शिव, ऊ-- भैरव, अनुस्वार-- दुःखहरता]
यह कूर्च बीज है!
अर्थ--असुर-सहारक शिव मेरे दुखों का नाश करें!
१०--ग्लौं--[ग,ल,औ,बिंदु]--ग-गण ेश, ल--व्यापक रूप, आय--तेज, बिंदु-दुखहरण!
अर्थात--व्यापक रूप विघ्नहर्ता गणेश अपने तेज से मेरे दुखों का नाश करें!
११--स्त्रीं--[स,त,र,ई,बिंदु]-- स--दुर्गा, त--तारण, र--मुक्ति, ई--महामाया, बिंदु--दुःखहरण!
अर्थात--दुर्गा मुक्तिदाता, दुःखहर्ता,, भवसागर-तारिणी महामाया मेरे दुखों का नाश करें!
१२--क्षौं--[क्ष,र,औ,बिंदु] क्ष--नरीसिंह, र--ब्रह्मा, औ--ऊर्ध्व, बिंदु--दुःख-हरण!
अर्थात--ऊर्ध्व केशी ब्रह्मस्वरूप नरसिंह भगवान मेरे दुखों कू दूर कर!
१३--वं--[व्, बिंदु]--व्--अमृत, बिंदु- दुःखहरता! [इसी प्रकार के कई बीज मन्त्र हैं] [शं-शंकर, फरौं--हनुमत, दं-विष्णु बीज, हं-आकाश बीज,यं अग्नि बीज, रं-जल बीज, लं- पृथ्वी बीज, ज्ञं--ज्ञान बीज, भ्रं भैरव बीज!
अर्थात--हे अमृतसागर, मेरे दुखों का हरण कर!
१४--कालिका का महासेतु---क्रीं, त्रिपुर सुंदरी का महासेतु--ह्रीं, तारा का हूँ, षोडशी का स्त्रीं, अन्नपूर्णा का श्रं, लक्ष्मी का श्रीं!
१५-- मुखशोधन मन्त्र १० प्रकार के हैं!
सुन्दरी--श्रीं ॐ श्रीं ॐ श्रीं ॐ! तारा--ह्रीं ह्रूं ह्रीं! स्यामा-क्रीं क्रीं क्रीं ॐ ॐ ॐ क्रीं क्रीं क्रीं! दुर्गा- ऐं ऐं ऐं ! बगलामुखी--ऐं ह्रीं ऐं! मातंगी--ऐं ॐ ऐं! लक्ष्मी--श्रीं! गणेश--ॐ गं!
शास्त्रों में अनेकों बीज मन्त्र कहे हैं, आइये बीज मन्त्रों का रहस्य जाने!
१--क्रीं--इसमें चार वर्ण हैं! [क,र,ई,अनुसार] क--काली, र--ब्रह्मा, ईकार--दुःखहरण!
अर्थ--ब्रह्म-शक्ति-संपन्न महामाया काली मेरे दुखों का हरण करे!
२--श्रीं----चार स्वर व्यंजन---[श, र, ई, अनुसार]=श--महालक्ष्मी, र-धन-ऐश्वर्य, ई-- तुष्टि, अनुस्वार-- दुःखहरण!
अर्थ---धन- ऐश्वर्य सम्पति, तुष्टि-पुष्टि की अधिष्ठात्री देवी लाष्मी मेरे दुखों का नाश कर!
३--ह्रौं---[ह्र, औ, अनुसार] ह्र-शिव, औ-सदाशिव, अनुस्वार--दुःख हरण!
अर्थ--शिव तथा सदाशिव कृपा कर मेरे दुखों का हरण करें!
४--दूँ ---[ द, ऊ, अनुस्वार]--द- दुर्गा, ऊ--रक्षा, अनुस्वार करना!
अर्थ-- माँ दुर्गे मेरी रक्षा करो! यह दुर्गा बीज है!
५--ह्रीं --यह शक्ति बीज अथवा माया बीज है!
[ह,र,ई,नाद, बिंदु,]---ह-शिव, र-प्रकृति,ई--महामाया, नाद-विश्वमाता, बिंदु-दुःख हर्ता!
अर्थ--शिवयुक्त विश्वमाता मेरे दुखों का हरण करे!
६--ऐं--[ऐ, अनुस्वार]-- ऐ- सरस्वती, अनुस्वार-दुःखहरण!
अर्थ--- हे सरस्वती मेरे दुखों का अर्थात अविद्या का नाश कर!
७--क्लीं-- इसे काम बीज कहते हैं![क, ल,ई अनुस्वार]--क--कृष्ण अथवा काम,ल--इंद्र,ई--तुष्टि भाव, अनुस्वार-सुख दाता!
कामदेव रूप श्री कृष्ण मुझे सुख-सौभाग्य दें!
८--गं--यह गणपति बीज है![ग, अनुस्वार] ग-गणेश, अनुस्वार-दुःखहरता!
अर्थ-- श्री गणेश मेरे विघ्नों को दुखों को दूर करें!
९--हूँ--[ ह, ऊ, अनुस्वार]--ह--शिव, ऊ-- भैरव, अनुस्वार-- दुःखहरता]
यह कूर्च बीज है!
अर्थ--असुर-सहारक शिव मेरे दुखों का नाश करें!
१०--ग्लौं--[ग,ल,औ,बिंदु]--ग-गण
अर्थात--व्यापक रूप विघ्नहर्ता गणेश अपने तेज से मेरे दुखों का नाश करें!
११--स्त्रीं--[स,त,र,ई,बिंदु]--
अर्थात--दुर्गा मुक्तिदाता, दुःखहर्ता,, भवसागर-तारिणी महामाया मेरे दुखों का नाश करें!
१२--क्षौं--[क्ष,र,औ,बिंदु] क्ष--नरीसिंह, र--ब्रह्मा, औ--ऊर्ध्व, बिंदु--दुःख-हरण!
अर्थात--ऊर्ध्व केशी ब्रह्मस्वरूप नरसिंह भगवान मेरे दुखों कू दूर कर!
१३--वं--[व्, बिंदु]--व्--अमृत, बिंदु- दुःखहरता! [इसी प्रकार के कई बीज मन्त्र हैं] [शं-शंकर, फरौं--हनुमत, दं-विष्णु बीज, हं-आकाश बीज,यं अग्नि बीज, रं-जल बीज, लं- पृथ्वी बीज, ज्ञं--ज्ञान बीज, भ्रं भैरव बीज!
अर्थात--हे अमृतसागर, मेरे दुखों का हरण कर!
१४--कालिका का महासेतु---क्रीं, त्रिपुर सुंदरी का महासेतु--ह्रीं, तारा का हूँ, षोडशी का स्त्रीं, अन्नपूर्णा का श्रं, लक्ष्मी का श्रीं!
१५-- मुखशोधन मन्त्र १० प्रकार के हैं!
सुन्दरी--श्रीं ॐ श्रीं ॐ श्रीं ॐ! तारा--ह्रीं ह्रूं ह्रीं! स्यामा-क्रीं क्रीं क्रीं ॐ ॐ ॐ क्रीं क्रीं क्रीं! दुर्गा- ऐं ऐं ऐं ! बगलामुखी--ऐं ह्रीं ऐं! मातंगी--ऐं ॐ ऐं! लक्ष्मी--श्रीं! गणेश--ॐ गं!
16 January 2013
13 January 2013
एक चीज़ याद रखना की तुम इस दुनिया में अपनी आध्यात्मिक यात्रा करने अकेले आए हो| प्राण छोड़ोगे भी अकेले| समाधी की स्थिति में भी अकेले ही होगे| जो तुम्हारे जीवन में लोग आएँगे उनको अपना सहयात्री समझना और किसी से वैर नही रखना नहीं तो एक रूठा हुआ यात्री और कई यात्राएँ फिर प्रारंभ करवाने की क्षमता रखता है| अपने जीवन में क्षमा कर देना यदि किसी से भी मन-मुटाव रखा है तो| क्षमा का अर्थ है दूसरे के हित की कामना करना| यह भाव कभी नही लाना "देखा मेरे से पंगा लिया था तो बुरा हुआ| अच्छा हुआ|" क्षमा का सबसे सरल उपाय है किसी की भलाई की कामना करना| हर साधना के पश्चात अपने शत्रुओं की मंगल कामना करना और शत्रु शब्द अपनी वर्णमाला से निकाल देना|सब शिव की संतान हैं|"
12 January 2013
Baba ji said that hatred is caused by the following factors:
Expectations-When we expect others to do something for us or when we live in the hope of a certain kind of behaviour of others towards us, certain kind of respect towards us and anticipate a particular attitude to us as per the image we have made of the person in our minds and when the aforementioned aspects are not fulfilled, it induces a feeling of revulsion and hatred which chokes the Anahat chakra. He pointed out that one must be a free person. No expecting from anyone. No creating boundaries of Karma for either yourself or others.
-Inferiority complex- Whenever a person belittles us or rises more than us, we feel envy. The root emotion of envy is hatred. Love can never breed jealousy. It is repulsion and deep disgust which evoke jealousy. Baba ji said that contentment with whatever you get and gratitude for the same to Shiva will help one overcome such a vice.
Superiority complex -Most of the times we are pining for the object which the other person has or possesses rather than materialising good for ourselves. The classic case of Uski kameez meri kameez se safed kyun demonstrates this mentality to the hilt. We feel we must be bigger than others, richer than others etc. We do not think we should be happy. We think we must be ahead in any and every respect vis a vis others. We compare. We envy. We sulk. We curse God. This is wrong.
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“जीवन में goal बनाओ और अपने से पूछो what is the price I’m ready to pay to achieve this goal?”
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“एक बार की बात है एक व्यक्ति था, वह इतनी भारी गाय को उठा लेता था|लोग हैरान होते थे| एक दिन किसी ने आकर उससे पूछा भाई तुम कैसे इतनी वज़नदार गाय को उठा लेते हो? तो हंस कर कहने लगा 'मित्र जब मैं छोटा था तो इस गाय का जन्म हुआ| जब यह बछड़ा थी तभी से इसे मैं हर रोज़ उठाता था| यह बड़ी होती गई पर मेरी इसको रोज़ उठाने की आदत नहीं गयी| फलस्वरूप अब मैं इसे बछड़ा समझ कर उठा लेता हूँ| This is the power of the belief system and regularity. जीवन में एक persistence लाओ| एक कार्यशैली बनाओ और उस पर अमल करो| हर रोज़ एक ही समय पर अपना हर कार्य करो| तुम्हारा शरीर आदि हो जाएगा| साधना में नियम का पालन करना और भी फलदायी है| एक ही समय पर साधना करके देखो| तुम खुद मेरे पास आओगे की हाँ बाबा जी बहुत फरक है अनुशासित जीवन में और अनुशासंहीन ज़िंदगी में|"
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“Bed पर बैठ कर कभी साधना मत करना| जब हम सोते हैं तो etheric waste emit करते हैं| Bed पर साधना करने से वह energy आपकी energy को खाएगी और साधना का लाभ नहीं मिल पाएगा|”
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DISCIPLINE IN LIFE
1 “मेरा यह एक कथन अपने कमरे में लिख कर लगा लो: ‘Everyday I have to become better and better. Everyday in every way I’m better than yesterday.’
2.
"हर रोज़ जब भी उठो तो प्रयास करना की कल के मुक्काब्ले आज तुम और अच्छे इंसान बनो|”
3.
“नेत्र खुलते ही शैय्या त्याग दिया करो| पासे पलटना और आलस करना तुम्हारे लिए नहीं है|”
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“जब मैं तुम्हें दिल खोलकर शक्ति दे रहा हूँ तो तुम्हें बाहर जाने की क्या ज़रूरत है ? बाबा अपने बच्चों को अनंत प्रेम करता है और अपना जीवन उन्ही की सेवा में लगाता है|मेरी मानो यदि तुम प्रति दिन साधना करते हो और नियम पूर्वक शिव योग के सभी सिद्धांतों का पालन करते हो, मैं तुम्हें guarantee देता हूँ की इसी जन्म में आत्म साक्षात्कार होना ही होना है| कहाँ भागते फिरते हो ? किन पाखंडियों के लोभ में आते हो ?”
6.
“यदि कोई भी तुम्हें यह कहता है की बाबा जी का message देना है तो कभी विश्वास नहीं करना| मुझे यदि कोई भी message देना होगा, तो मैं स्वयं तुम्हे officially बताऊँगा| कहा सुनी पर यकीन नहीं करना|”
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If you are reading this, you are lucky enough to possess a human body and a Guru like Avadhoot Shivanand ji. Never again will such a golden opportunity throw itself upon you and plead to have it seized. This is the time. This is the age. Sadhna is the only way to make life peaceful, tranquil, prosperous and happy.
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“साधक बनो तो घमंड नहीं लाना| एक सामान्य जीवन जियो और किसी से अपनी साधना के बारे में ज़िक्र भी मत करो|”
“जहाँ भी यह श्री विद्या ३ साधना होएगी, वहाँ की भूमि सुरक्षित हो जाएगी
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“जो लोग healing करते हैं उनको मैं यह बताना चाहूँगा की इसको करते समय कभी यह भाव नहीं लाना की तुम किसी को ठीक कर रहे हो| भाव यह लाना की तुम माँ आद्याशक्ति से प्रार्थना कर रहे हो और वह अपनी दिव्य ऊर्जा से सब कर रही हैं| ठान कर healing नहीं करना| कुछ साधक कहते हैं नहीं मैं तो ठीक करके ही दम लूँगा| ऐसा कभी नहीं करना| प्रकृति सबको ठीक करती है| तुम अपना काम करना| कुछ ज़बरदस्ती नहीं करना| विनम्र भाव से सिर्फ़ प्रार्थना करना और सारा भाव उस माँ संजीवनी में डाल देना जो सर्व दायिनि है|"
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“जैसी तुम्हारी energy होगी, वैसी ही घटनाएँ तुम्हारे साथ होंगी|”
“तुम्हारे मुख से निकला शब्द कभी किसी को आघात ना पहुँचाए”
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Yesterday a lady came on the mike and said, “नमः शिवाय बाबा जी| बाबा जी मेरी कमर में बहुत दर्द रहता है और मैं ज़्यादा देर के लिए बैठ भी नहीं पाती|” Baba ji replied, “चलो बेटा सच सच खेलते हैं|” (All sadhaks including the lady started grinning). Then Baba ji through his omniscience asked, “बेटा सच सच बताओ तुम अपने भाईयों को सक्षम नहीं समझती तुम्हारा कुछ भी काम करने को?” The lady started smiling. Baba ji said, “बताओ बेटा सच है की नहीं?” The lady conceded on prodding, “हांजी बाबा जी”| Baba ji smiled and said, “बेटा उन्हें लायक समझो| प्रेम करो| सभी के साथ मिलकर काम करो| किसी को असमर्थ नहीं समझो| Then Baba ji looked towards the lady almost as if eager to reveal something more and averred, “अम्मा एक और बात बोल दूं? The lady smiled and nodded in agreement. To this Baba ji said, “तुम जिससे प्यार करती हो ना उससे शादी कर लो, सुखी और खुश रहोगी|” The lady blushed deliriously and very shyly thanked Baba ji, bringing a smile to the face of all. All the sadhaks were mesmerised by Baba ji’s clairvoyance, wit
and sense of humour.
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“अब तुम हीरे के ज़ोहरी बन गये हो| अब दर दर जाके ढिंढोरा नहीं पीटना की देखो मेरे पास कितने हीरे हैं आओ मुझे लूट लो| क्योंकि मैने जो शक्ति तुम्हारे भीतर स्थापित कर दी है अब वा तांत्रिकों और काई शक्टिओं के लिए अनमोल है| इन सब से बचना| अपना संकल्प मजबूत रखना| किसी दूसरी विद्दा के व्यवसायी के पास नहीं जाना|”
"गुरु की मर्यादा का पालन करना|"
“अपनी साधना प्रारंभ करने से पहले अपने गुरु को धन्यवाद देना क्योंकि यह उसी गुरु का तपोबल है जिस कारण आज तुम साधना सीख पाए हो और शक्ति ली पाए हो| गुरु ने ही बीज को व्रक्ष में परिवर्तित काइया जिसके फल तुम खा रहे हो| साधना से पूर्व गुरु से निवेदन करना की हे गुरुदेव मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ की आप मेरा मार्गदर्शन करो, मेरी रक्षा करो,मुझे काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार से मुक्ति दिलवाओ| हे गुरुदेव मैं आपका आवाहन करता हूँ|”
“जब मनुष्य मुक्ति के द्वार पर होता है तो माया उसे फिर पकड़ती है| प्रकृति उसकी परीक्षा लेती है| यदि तो तुम परीक्षा में fail हो जाते हो तो तुम्हारे संचित कर्म और भव्य रूप में तुम्हारे पास लौट आते हैं| इसीलिए उस शिव का नाम लेते रहना और काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार को अपने निकट नहीं आने देना| “
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“एक बात गाँठ बाँध लेना की जीवन में shortcut नहीं होते| कोई भी सांसारिक या आध्यात्मिक उपलब्धि को हासिल करना है तो ताप और परिश्रम तो करना ही होगा| आसानी से कुछ नहीं मिलेगा| मेहनत करनी ही होगी| पसीना बहाना ही होगा| साधना करनी ही होगी| यदि तुम्हे कोई यह कहे की पैसे देके तुम उच्च की साधनाएँ सीख सकते हो तो कभी विशास नहीं करना| सिद्ध मार्ग में कोई छोटा रास्ता नहीं होता| लगान,श्रद्धा, भक्ति और नियमितता अपने जीवन में लाकर देखो| मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है| रूपांतरण धीरे धीरे ही आएगा| Instant results की अपेक्षा नहीं करना| सहज पके सो मीठा|”
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“हर साधना के बाद सभी के लिए प्रार्थना करना| यह माँगना की सबका कल्याण हो, सभी का उत्थान हो
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"जब भी तुम किसी और के बनाए हुए भोजन का पान करते हो तो उसके आभारी और कर्ज़दार हो जाते हो
भोजन पकाने वाले को धन्यवाद प्रकट करने के साथ साथ प्रेम भी देना और किसी भी प्रकार की सेवा कभी भी देने से मुकरना नहीं
|किसी को खाना खिलाना एक बहुत बड़ा सौभाग्य है जिससे कार्मिक लेन-देन झट से पूरे होते हैं|"
=============================================================
Baba ji also dwelt on the fact that infatuation and attachment to fellow humans,
worldly objects and desires brings about downfall and hence one must dispense with them.
Attention must at all times must be on the Supreme father---Shiva.
==============================================================
“यदि कोई तुम्हे गाली देता है और तुम उसे गुस्से में आकर गाली भरा जवाब देते हो तो कर्म लगता है| तुम श्री विद्या साधक हो, अब और कर्म संचित नई करो|
कोई गाली दे तो बड़े प्यार से उसको नमन करना| क्षमा करना| उसमें भी शिव का उग्र रूप देखना| शिव के उस रूप को भी नमस्कार करना|ऐसा करने से और कर्म इकट्ठे नही करोगे और आध्यात्मिक विकास गति से होगा|”
भोजन पकाने वाले को धन्यवाद प्रकट करने के साथ साथ प्रेम भी देना और किसी भी प्रकार की सेवा कभी भी देने से मुकरना नहीं
|किसी को खाना खिलाना एक बहुत बड़ा सौभाग्य है जिससे कार्मिक लेन-देन झट से पूरे होते हैं|"
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Baba ji also dwelt on the fact that infatuation and attachment to fellow humans,
worldly objects and desires brings about downfall and hence one must dispense with them.
Attention must at all times must be on the Supreme father---Shiva.
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“यदि कोई तुम्हे गाली देता है और तुम उसे गुस्से में आकर गाली भरा जवाब देते हो तो कर्म लगता है| तुम श्री विद्या साधक हो, अब और कर्म संचित नई करो|
कोई गाली दे तो बड़े प्यार से उसको नमन करना| क्षमा करना| उसमें भी शिव का उग्र रूप देखना| शिव के उस रूप को भी नमस्कार करना|ऐसा करने से और कर्म इकट्ठे नही करोगे और आध्यात्मिक विकास गति से होगा|”
“तुम्हारी
energy और भगवान की energy equilibrium में flow होती रहनी चाहिए| पर अपने
विकारों में हम इतना लिपट जाते हैं की हमारी energy God energy तक पहुँच ही
नही पाती|
ऐसा होने पर ही करता भाव आता है| इसी कारण अहंकार की उत्पत्ति होती है| अपनी मैं के पीछे नहीं भागना|
ऐसा होने पर ही करता भाव आता है| इसी कारण अहंकार की उत्पत्ति होती है| अपनी मैं के पीछे नहीं भागना|
अपनी भावना शुद्ध रखना और
सब उस परमेश्वर पर छोड़ देना|
करता पुरुष एक ही है| गुरु नानक जी भी तो यही कहते थे 'एक ओंकार सतनाम करतापूरख...........'
करता पुरुष एक ही है| गुरु नानक जी भी तो यही कहते थे 'एक ओंकार सतनाम करतापूरख...........'
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कभी यह नहीं सोचना मैं नहीं होता तो इसका क्या होता ? या फिर मेरी वजह से आज वह इंसान इतना सुखी है| तुम सिर्फ़ निमित बनो और उस करता पुरुष को धन्यवाद देते रहो की हे प्रभु तुमने मुझे इतना सक्षम बनाया की मैं किसी की सेवा कर सकाऔर किसी का मेरे कारण भला हो सका|मुझ पर कृपा इतनी हो की मैं सभी के कल्याण का कारण बनू| ऐसा भाव रखोगे तो कभी कर्म दोष लग ही नहीं सकता|”
कभी यह नहीं सोचना मैं नहीं होता तो इसका क्या होता ? या फिर मेरी वजह से आज वह इंसान इतना सुखी है| तुम सिर्फ़ निमित बनो और उस करता पुरुष को धन्यवाद देते रहो की हे प्रभु तुमने मुझे इतना सक्षम बनाया की मैं किसी की सेवा कर सकाऔर किसी का मेरे कारण भला हो सका|मुझ पर कृपा इतनी हो की मैं सभी के कल्याण का कारण बनू| ऐसा भाव रखोगे तो कभी कर्म दोष लग ही नहीं सकता|”
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